नेशनल टेक्निकल एडवायजरी ग्रुप ऑफ इम्युनाइजेशन (NTAGI) के अनुसार, कोविशील्ड (Covishield) की दूसरी डोज में अधिक समय लगने से लोगों को दो फायदे होंगे।
कोरोना टीकाकरण (Corona Vaccination) की शुरुआत से ही कोविशील्ड (Covishield) की डोज को लेकर लगातार असमंजस की स्थिति देखने को मिली है। हर बार अलग-अलग वजहों से इसके दो डोज के बीच के अंतर में बदलाव किया गया है। कभी इसके एफिकेसी रेट से संबंधित अलग-अलग आंकड़ों की वजह से तो कभी ब्रिटेन और अन्य यूरोपीय देशों में खून के थक्के जमने के मामले सामने आने की वजह से यह बदलाव हुए।
भारत सरकार कोविशील्ड को लेकर दो बार नियम बदल चुकी है। पहले 22 मार्च को दो डोज के अंतर को 4-6 हफ्ते से बढ़ाकर 6-8 हफ्ते किया। फिर 13 मई को अंतर बढ़ाकर 12-16 हफ्ते कर दिया। पर कोवैक्सिन के डोज के अंतर में कोई बदलाव नहीं हुआ है।
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अब एक बार फिर से कोविशील्ड (Covishield) सुर्खियों में है। नेशनल टेक्निकल एडवायजरी ग्रुप ऑफ इम्युनाइजेशन (NTAGI) के अनुसार, वैक्सीन की दूसरी डोज में अधिक समय लगने से लोगों को दो फायदे होंगे। पहला तो ये कि इससे ज्यादा से ज्यादा लोगों तक कोरोना वैक्सीन का एक डोज पहुंचाया जा सकेगा। इसके अलावा ये भी कहा गया है कि इससे वैक्सीन की क्षमता भी बढ़ेगी।
इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) के चीफ डॉ. बलराम भार्गव का कहना है कि दो डोज के अंतर को सिर्फ कोवीशील्ड के लिए बढ़ाया है, कोवैक्सिन के लिए नहीं। यह फैसला वैक्सीन के पहले डोज की इफेक्टिवनेस के आधार पर तय किया गया है।
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उनका कहना है कि कोवीशील्ड (Covishield) के पहले डोज की इफेक्टिवनेस ज्यादा है। ट्रायल्स में पता चला है कि यह 12 हफ्ते तक असरदार रहता है। इस वजह से दूसरा डोज देरी से लगाने का फैसला किया गया है। कोवैक्सिन को लेकर ऐसी कोई स्टडी नहीं हुई है, इस वजह से उसके दो डोज का अंतर नहीं बदला गया है।
डॉ. भार्गव कहते हैं कि कोविड-19 की पहली वैक्सीन 15 दिसंबर को आई थी। तब से अब तक कोविड-19 वैक्सीन का साइंस इवॉल्व हो रहा है। हमें नई-नई बातें पता चल रही हैं और उस अनुसार हम अपने वैक्सीनेशन कैम्पेन में बदलाव ला रहे हैं। इसी कड़ी में जब पता चला कि कोवीशील्ड का पहला डोज 12 हफ्ते तक असरदार है तो हमने दो डोज के अंतर को बढ़ाया ताकि वैक्सीन की इफेक्टिवेनस बढ़ाई जा सके।
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गाइडलाइन में बदलाव कोवीशील्ड के संबंध में कई केस स्टडी और क्लिनिकल डेटा के आधार पर किया गया है। यह बताता है कि पहले डोज के कुछ हफ्तों बाद अगर दूसरा डोज लिया जाए तो वैक्सीन की इफेक्टिवनेस काफी बढ़ जाती है। बहरहाल, क्लिनिकल रिसर्च बताती है कि कोविशील्ड के दो डोज के बीच में अगर 8 हफ्ते से ज्यादा का अंतर रखा जाता है तो वैक्सीन की क्षमता यानी कि उसका प्रभाव 80%-90% तक हो जाता है।
दुनियाभर में बन रही वैक्सीन की बात करें तो जॉनसन एंड जॉनसन एवं स्पुतनिक लाइट वैक्सीन के अलावा सभी वैक्सीन में दो डोज की जरुरत होती है। ये वैक्सीन हमारे शरीर में इम्युनोजेनिक रेस्पॉन्स बना सके ओर हमें वायरस से लड़ने में सहयता करे, इसके लिए निर्धारित समय पर वैक्सीन के दोनों डोज लेना जरूरी है।
दो डोज वाली वैक्सीन में पहला डोज शरीर के एंटीबॉडी रेस्पांस को जगाता है। यानी उससे शरीर को ट्रेनिंग मिलती है कि वह वायरस या पैथोजन को पहचानें और शरीर के इम्यून सिस्टम को सक्रिय करें। वहीं दूसरा डोज उस इम्यून रेस्पांस को मजबूती देकर एंटीबॉडी को कई गुना बढ़ा देता है।
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इस वजह से यह सलाह दी जाती है कि अगर वैक्सीन को दो डोज के हिसाब से डिजाइन किया गया है तो उसके दो डोज लेने जरूरी है। दो डोज लेने का कारण ये भी है कि एक डोज शरीर के अंदर एंटीबॉडी रेस्पॉन्स को बढ़ाता है। वहीं, दूसरे डोज की बात करें तो ये डोज शरीर में उस एंटीबॉडी के रेस्पॉन्स को मजबूती प्रदान करता है।