एक बीमार बच्ची की जान बचाने के लिए भारतीय सेना (Indian Army) के जवानों ने आतंकियों के खिलाफ अभियान (Anti Terrorist Operation) टाल दिया।
भारतीय सेना (Indian Army) जनता की मदद के लिए क्या कर सकती है, इस बात की मिसाल जम्मू कश्मीर (Jammu Kashmir) के अनंतनाग (Anantnag) में देखने को मिली। यहां एक बीमार बच्ची की जान बचाने के लिए जवानों ने आतंकियों के खिलाफ अभियान (Anti Terrorist Operation) टाल दिया।
दरअसल, अनंतनाग जिला मुख्यालय से दूर पहाड़ों की तलहटी में स्थित करालखुड में बीते 6 मार्च को सुरक्षाबलों को आतंकियों (Terrorists) की मौजूदगी की खबर मिली थी। इसकी भनक लगते ही सुरक्षाबलों ने इलाके की घेराबंदी कर ली। आतंकियों को बाहर निकालने के लिए घेराबंदी कड़ी की जा रही थी, तभी अचानक एक मकान से दो आदमी बाहर निकले। उन्हें देखते ही जवान चौकन्ने हो गए।
दोनों आदमी हाथ उठाए धीरे-धीरे आगे बढ़े और पोजीशन लिए जवानों के पास पहुंचे। उन्होंने बताया कि घर में एक बच्ची बहुत ज्यादा बीमार है। यह सुनते ही जवानों ने मौर्चे पर तैनात बाकी जवानों को वायरलेस पर संदेश दिया कि कोई फायर नहीं करेगा, सब अपनी पोजीशन पर रहें, ऑल स्टेशन्स ऑन होल्ड…।
इसके कुछ ही देर बाद गांव में सेना (Indian Army) का एक वाहन दाखिल हुआ। इस वाहन में सेना के डाक्टर कैप्टन संजय शर्मा जरूरी सामान और जवानों के साथ आए थे। वह 11 साल की की उस बीमार बच्ची की जान बचाने के लिए फरिश्ता बनकर आए। डाक्टर के आने के साथ ही जवानों ने गांव में तलाशी अभियान बंद कर दिया ताकि इलाज में कोई खलल न पड़े।
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कैप्टन संजय शर्मा ने बताया कि जब मैं मकान में दाखिल हुआ तो वहां फर्श पर एक बच्ची तेज बुखार से कांप रही थी। नाड़ी भी तेज चल रही थी और उसे कोई दौरा पड़ने का भी संकेत मिल रहा था। उसकी जांच की तो पता चला कि उसे दौरा भी पड़ा है। मैंने उसे दवा दी। कुछ देर में उसकी हालत स्थिर दिखी।
इसके बाद अभिभावकों से उसे अस्पताल ले जाकर किसी न्यूरोलोजिस्ट को दिखाने की सलाह दी। कैप्टन संजय शर्मा मूल रूप से पंजाब के पटियाला के रहने वाले हैं। उन्होंने बताया कि कश्मीर में ग्रामीणों के लिए कई बार अस्पताल पहुंचना मुश्किल हो जाता है। ऐसे हालात में वे सेना के डाक्टरों पर ही ज्यादा भरोसा करते हैं।
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दक्षिण कश्मीर में आतंकरोधी अभियानों के लिए जिम्मेदारी संभालने वाली सेना (Indian Army) की विक्टर फोर्स के जीओसी मेजर जनरल रश्मि बाली ने कहा कि मुझे इस अभियान के स्थगित होने का कोई अफसोस नहीं है। तलाशी अभियान रोका जा सकता है, लेकिन किसी निर्दोष की जान को संकट में नहीं डाला जा सकता। जवानों और अधिकारियों ने हालात की संवेदनशीलता के मद्देनजर सही फैसला लिया है।
वहीं, सेना (Indian Army) के कर्नल कपिल मोहन सहगल ने इस बाबत कहा कि 6 मार्च की शाम हमारे लिए बहुत चुनौती भरी थी। मौसम भी खराब था। गांव में आतंकियों की मौजूदगी की सूचना थी। घेराबंदी कर ली गई थी। तलाशी अभियान जारी था। किसी को घर से बाहर न निकलने हिदायत थी। ऐसे में दो आदमी अचानक घर से निकले। उनके घर में एक बच्ची गंभीर रूप से बीमार थी।
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कर्नल कपिल मोहन सहगल ने कहा कि उस समय हमारे लिए आतंकियों से ज्यादा वह बच्ची की जान बचान अहम था। आतंकी आज नहीं तो कल मारे जाएंगे, हमने यही सोचकर अपना अभियान स्थगित कर दिया। उन्होंने कहा कि आतंकियों का खात्मा हमारा एजेंडा है, लेकिन उससे भी ज्यादा बड़ी जिम्मेदारी निर्दोष लोगों की जान की हिफाजत करनी है।