लाल आतंक के गढ़ बस्तर (Bastar) में धर्मपाल सैनी (Dharmpal Saini) 45 साल से आदिवासी लड़कियों को स्कूल तक लाने की मुहिम में जुटे हैं।
छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के बीजापुर में कोबरा कमांडो (CoBRA Commando) राकेश्वर सिंह (Rakeshwar Singh Manhas) को नक्सलियों (Naxalites) के कब्जे से रिहा कराने में 90 साल के स्वतंत्रता सेनानी और सामाजिक कार्यकर्ता धर्मपाल सैनी (Dharmpal Saini) की अहम भूमिका है। विनोबा भावे के शिष्य रहे सैनी को ‘बस्तर का गांधी’ भी कहा जाता है।
स्थानीय लोग उन्हें प्यार से ‘ताऊजी’ भी कहते हैं। सैनी भूदान आंदोलन के प्रणेता विनोबा भावे के शिष्य रहे हैं। इसके लिए उन्हें साल 1992 में पद्मश्री से भी नवाजा गया। साल 2012 में ‘द वीक’ मैगजीन ने उन्हें ‘मैन ऑफ द इयर’ चुना था।
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लाल आतंक के गढ़ बस्तर (Bastar) में धर्मपाल सैनी (Dharmpal Saini) 45 साल से आदिवासी लड़कियों को स्कूल तक लाने की मुहिम में जुटे हैं। सैनी जब पहली बार बस्तर आए थे तब बस्तर में साक्षरता का ग्राफ 10 प्रतिशत भी नहीं था और जनवरी, 2018 तक ये बढ़कर 53 प्रतिशत हो गया।
लेकिन, फिर उन्हें लगा कि सिर्फ पढ़ाई से हालात नहीं सुधर सकते, इसलिए उन्होंने 2004 से लड़कियों के साथ लड़कों को भी खिलाड़ी बनाना शुरू कर दिया। एक हादसे में कंधे की हडि्डयां टूटने और रीढ़ में गंभीर चोट के बावजूद धर्मपाल (Dharmpal Saini) रोजाना खिलाड़ियों को ट्रेनिंग देते हैं। उनके साथ दौड़ लगाते हैं। एथलेटिक्स, तीरंदाजी, कबड्डी और फुटबॉल सिखाते हैं।
90 बरस की उम्र पार कर लेने के बाद भी धर्मपाल सैनी बेहद एक्टिव हैं और खुद ही स्पोर्ट्स में हिस्सा लेने वाली छात्राओं की ट्रेनिंग और डाइट का ख्याल रखते हैं। वे अब तक 2 हजार से ज्यादा एथलीट तैयार कर चुके हैं और उनके आश्रम में पढ़ी जाने कितनी लड़कियां आज डॉक्टर, इंजीनियर और प्रशासनिक अधिकारी बन चुकी हैं।
मूल रूप से मध्यप्रदेश के धार के रहने वाले धर्मपाल (Dharmpal Saini) अपने कॉलेज के दिनों में एथलीट और वॉलीबॉल खिलाड़ी थे। उन्होंने आगरा यूनिवर्सिटी से कॉमर्स में ग्रेजुएशन किया है। जब वे 8वीं क्लास में थे, तब उन्होंने बस्तर की लड़कियों की बहादुरी की कहानियां पढ़ीं, जिसमें लड़कियों ने छेड़छाड़ करने वालों को धूल चटाया था। यह खबर युवा सैनी के मन में घर कर गई।
सैनी के मन में यह बात लगातार आ रही थी कि बस्तर की लड़कियां बेहद बहादुर हैं और उनकी ऊर्जा को सही दिशा देने की जरूरत है। इसी बात को सोचते हुए उन्होंने अपने गुरु से बस्तर जाने की इजाजत मांगी। कहा जाता है कि विनोबा भावे ने उन्हें इस शर्त पर अनुमति दी थी कि वे अगले 10 सालों तक उन्हें बस्तर में ही रहना होगा।
फिर ग्रेजुएशन पूरी करने के बाद वे बस्तर आकर लड़कियों की शिक्षा पर काम करने लगे। बस्तर में सुविधाओं का अभाव कई लोगों को उसे छोड़ने पर मजबूर करता रहा है, लेकिन सैनी के साथ इससे एकदम अलग हुआ। वे तो बस्तर आने के बाद वहीं के होकर रह गए। 1976 में उन्होंने यहां दो आश्रम खोले। खेल यहां रहने वाले हर युवा के जीवन का जरूरी हिस्सा है।
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वे बताते हैं कि बस्तर आने पर उन्होंने पाया कि यहां छोटे बच्चे भी कई किलोमीटर तक बगैर थके चलते हैं। बस्तर के युवा लगातार काम करने के बाद भी कभी शिकायत नहीं करते। ये सारी खूबियां देखते हुए धर्मपाल सैनी का एथलीट मस्तिष्क उन्हें बस्तर के लोगों की एनर्जी को दिशा देने की ओर ले गया।
धर्मपाल सैनी के मुताबिक, यहां के सभी बच्चे मेहनती तो हैं ही, लेकिन खास बात यह है कि इन बच्चों में एथलेटिक्स का नेचुरल टैलेंट है। स्टेट और नेशनल गेम्स में यहां के खिलाड़ी चैंपियन बन रहे हैं। अगर एक अच्छी एकेडमी खोली जाती है तो यहां से हमें अच्छे इंटरनेशनल खिलाड़ी मिलने लगेंगे।
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धर्मपाल (Dharmpal Saini) की स्टूडेंट ललिता कश्यप ने इनाम में 8 लाख रुपए जीते। इस पैसे से उसने घर बनवाया, स्कूटी खरीदी और बड़ी बहन की शादी का खर्च उठाया। इसी तरह कारी कश्यप ने तीरंदाजी में सिल्वर मेडल जीता। इनाम के पैसों से घर का खर्च उठा रही हैं। दिव्या ने घर बनवाया और परिवार को गाय-बैल भी खरीदकर दिए।
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कृतिका पोयाम ने भी पशु खरीदे। इसी तरह सैकड़ों लड़कियां अपने पैरों पर खड़ी हैं और अपना और परिवार का खर्च उठा रही हैं। उन्हें इस मुकाम तक पहुंचाने में उनके ‘ताऊजी’ का सबसे बड़ा योगदान है। धर्मपाल सैनी को केवल बस्तर के लोग ही अपना नहीं मानते, बल्कि नक्सली भी उन्हें सम्मान देते हैं और यही वजह है कि सीआरपीएफ कमांडो की रिहाई मुमकिन हो सकी।