युनिसेफ के सहयोग से एक महीने तक चलने वाले इस ब्रेन मैपिंग (Brain Mapping) में हर उस पहलु को ध्यान में रखा जाएगा जो नक्सलवाद के कारण प्रभावित हुए हैं।
छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के नक्सल प्रभावित सुकमा (Sukma) जिले में पहली बार पुलिस ब्रेन मैपिंग (Brain Mapping) कराने जा रही है। ‘पूना नर्कोम’ अभियान के तहत युनिसेफ की मदद से नक्सलवाद के कारण प्रभावितों और जवानों का सर्वे कराया जाएगा। सर्वे के पीछे जवानों और नक्सल पीड़ितों का दर्द को समझने का प्रयास किया जाएगा।
युनिसेफ के सहयोग से एक महीने तक चलने वाले इस ब्रेन मैपिंग (Brain Mapping) में हर उस पहलु को ध्यान में रखा जाएगा जो नक्सलवाद के कारण प्रभावित हुए हैं। इसके अलावा सर्वे में ऐसे लोगों को भी शामिल किया जाएगा जो दशकों से नक्सल इलाकों में रह रहे हैं। सर्वे के बाद निष्कर्ष के साथ एक रिर्पोट तैयार कर उच्च अधिकारियों का भेजा जाएगा।
‘विश्व आदिवासी दिवस’ पर सुकमा के पुलिस अधीक्षक सुनील शर्मा द्वारा शुरू किए गए ‘पूना नर्कोम’ अभियान के तहत पुलिस लगातर नए प्रयास कर रही है। युवाओं को पुलिस भर्ती के साथ अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इसी कड़ी में सुकमा पुलिस ने पहली बार मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं से जूझ रहे जवानों, नक्सल पीडितों और सरेंडर नक्सलियों की मदद के लिए कदम उठाया है।
युनिसेफ की मदद से मनोचिकित्सकों की टीम सुकमा जिले में कैंप कर सर्वे करेगी। इसके लिए सर्वे को चार वर्गों में बांटा गया है। जिसमें नक्सल हिंसा के शिकार ग्रामीण, सरेंडर नक्सली, नक्सल इलाकों में निवासरत ग्रामीण और नक्सल इलाके में तैनात जवानों को शामिल किया गया है।
जिले में 2011 से अब तक नक्सलवाद से तंग आकर मुख्यधारा में जुड़े चुके आत्मसमर्पित नक्सलियों पर ब्रेन मैपिंग होगी। जिसमें जनमिलिशिया से लेकर 5 और 8 लाख के इनामी नक्सली भी शामिल हैं।
बता दें कि इससे पहले दंतेवाड़ा पुलिस द्वारा कराए गए सर्वे में कई चौकाने वाले खुलासे हुए थे। सर्वे के दौरान सरेंडर नक्सलियों ने बताया था कि किस तरह बड़े नक्सली नेता संगठन में भर्ती के बाद उनका इस्तेमाल सुरक्षाबलों के खिलाफ करते हैं।
युनिसेफ की मदद से दिल्ली से पहुंच रही तीन मनोचिकित्सकों की टीम कई बिंदुओं पर सर्वे करेगी। नक्सल हिंसा से पीड़ित परिवारों तक पहुंचकर उनके दर्द को सझने का प्रयास किया जाएगा।
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नक्सलवाद के कारण परिवार के सदस्य की मौत हुई हो या फिर नक्सलियों की दहशत से गांव छोड़ना पड़ा हो, नक्सलियों के दबाव में किस तरह संगठन में शामिल हुए हों, ऐसे तमाम बिंदुओं पर सर्वे होगा। नक्सल इलाकों में तैनात जवानों को होने वाली परेशानियों को भी समझने का प्रयास किया जाएगा।