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India China Faceoff: महज 23 साल की उम्र में पंजाब के गुरतेज सिंह ने देश पर लुटा दी जान

शहीद गुरतेज सिंह (फाइल फोटो)

भारत-चीन बार्डर (India China Border) पर पूर्वी लद्दाख (Ladakh) की गलवान घाटी (Galwan Valley) में चीनी सैनिकों के साथ हुई हिंसक झड़प में मानसा के गांव बीरेवाला डोगरा के सैनिक गुरतेज सिंह हो गए। महज 23 साल की उम्र में इस जांबाज ने देश पर अपनी जान लुटा दी। 19 जून को शहीद गुरतेज सिंह (Martyr Gurtej Singh) का पूरे सैन्य सम्मान के साथ अंतिम संस्कार कर दिया गया। पिता और भाई ने शहीद की चिता को मुखाग्नि दी।

शहीद गुरतेज सिंह (Martyr Gurtej Singh) के पिता का नाम विरसा सिंह है। तीन भाइयों में सबसे छोटे गुरतेज सिंह थे। वे करीब 2 साल पहले सेना (Army) में भर्ती हुए थे। सेना में ट्रेनिंग के बाद सिख रेजिमेंट में पहली बार लेह-लद्दाख में उनकी ड्यूटी लगी थी। शहीद गुरतेज सिंह (Martyr Gurtej Singh) के पिता विरसा सिंह और माता प्रकाश कौर ने बताया कि गुरतेज फौज (Indian Army) में बचपन से ही भर्ती होना चाहता था।

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उन्होंने बताया कि गुरतेज सिंह के शहीद होने की खबर उन्हें 17 जून को सुबह 5 बजे फोन पर मिली। उनका कहना है कि गुरतेज उनका ही नहीं देश का बेटा था, जिस पर उन्हें हमेशा गर्व रहेगा। उनके कॉलेज नेहरू कॉलेज मानसा के प्रो. अंबेश भारद्वाज ने बताया कि वह कॉलेज में स्थापित पीआईटी केंद्र में नान मेडिकल का सभी का चहेता विद्यार्थी था। उन्होंने कहा कि गुरतेज सिंह के शहीद होने पर उन्हें गर्व है।

गांव बीरेवाला डोगरा के गुरतेज सिंह समेत दो अन्य नौजवान जगजीत सिंह व गुरपाल सिंह सिख रेजीमेंट में एक ही साथ भर्ती हुए थे। गुरतेज (Martyr Gurtej Singh) लद्दाख में तैनात थे, जबकि उनके अन्य दो साथी जगजीत सिंह की ड्यूटी चंडीगढ़ और गुरपाल सिंह नागालैंड में है। अपने बचपन के साथी की यादों को ताजा करते इन दोस्तों ने बताया कि शहीद गुरतेज सिंह रोजाना गुरबाणी पाठ करता था।

उन्होंने बताया कि घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के चलते गुरतेज सिंह पाठी के रूप में भी अपनी सेवाएं देता था। उन्होंने बताया कि वह तीनों रोजाना गांव के स्कूल में प्रैक्टिस एक साथ किया करते थे। शहीद गुरतेज (Martyr Gurtej Singh) बड़े ही हंसमुख और मिलनसार स्वभाव के थे।