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कीर्ति-चक्र पाने वाले CRPF के पहले जांबाज कॉन्सटेबल भृगुनंदन चौधरी की कहानी…

Constable Bhrigu Nandan Choudhary

केन्द्रीय अर्धसैनिक पुलिस बल (CRPF) ने शहीद भृगुनंदन चौधरी (Constable Bhrigu Nandan Choudhary) की वीरगाथा पर कॉमिक्स भी प्रकाशित किया है।

तारीख थी 7 सितंबर, 2012… सीआरपीएफ की बिहार यूनिट को सूचना मिली कि गया-औरंगाबाद जिले के चकरबंधा जंगल में नक्सलवादी छिपे हुए हैं। सर्च-ऑपरेशन के तहत अलग-अलग टीमें तैयार की गईं। प्लान के मुताबिक देर रात 2 बजे (8 सितंबर, 2012) टीमों ने अलग-अलग दिशाओं से तलाशी-अभियान के लिए जंगल में एंट्री की।

सुबह के करीब 11 बजे इनमें से एक टीम जंगल के भीतर एक गांव के पास पहुंची। यह गया जिला का पचरूखिया गांव था। ये लोग अभी कुछ दूर ही गए थे कि 11 बजकर 20 मिनट पर अचानक करीब डेढ़ सौ नक्सलियों ने उनकी टुकड़ी पर आईईडी बम विस्फोस्ट करने के साथ ही अंधाधुंध गोलीबारी करनी शुरू कर दी। नक्सलियों के इस हमले से सर्च-टीम सकते में आ गई। कई जवान घायल हो गए। इन्हीं जवानों में एक थे जांबाज थे कॉन्सटेबल भृगुनंदन चौधरी (Constable Bhrigu Nandan Choudhary)।

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इस ब्लास्ट में भृगु नंदन चौधरी के दोनों पैर पूरी तरह से जख्मी हो गए। कमर के नीचे का हिस्सा बुरी तरह जख्मी होने के बावजूद उनके हौसले पस्त नहीं हुए। वे असहनीय दर्द के बावजूद रेंगते हुए आगे बढ़ते रहे और उन्होंने आधा दर्जन नक्सलियों को मार गिराया। साथ ही कई अन्य माओवादियों को घायल कर दिया।

आगे बढ़ते हुए उन्होंने बगल के नाले के पास गड्ढे में छलांग लगा दी और वहीं पोजिशन लेकर अपने साथियों को कवर-फायर देते रहे ताकि वे अपनी मैग्जीन बदल सकें। वे लगातार फायरिंग करते रहे। जिससे आखिरकार नक्सली पीठ दिखाकर भागने पर मजबूर हो गए। बुरी तरह जख्मी हालत में भी उन्होंने अपने साथियों को बचाया और नक्सलियों को उनके हथियार छीनने से रोका। यह बहादुर सैनिक शहादत से पहले अपने मिशन में सफल रहा।

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205 बटालियन कोबरा फोर्स के कांस्टेबल भृगु नंदन चौधरी (Constable Bhrigu Nandan Choudhary) को माओवादियों से लड़ने और मौत के सामने दृढ़संकल्प और असाधारण बहादुरी का प्रदर्शन करने के लिए मरणोपरांत कीर्ति चक्र से सम्मानित किया गया। कांस्टेबल भृगुनंदन चौधरी कीर्ति-चक्र से नवाजे जाने वाले पहले सीआरपीएफ जवान हैं।

यह पदक पाने वाले भृगुनंदन (Constable Bhrigu Nandan Choudhary) छत्तीसगढ़ के पहले और देश के दूसरे शहीद जवान हैं। पहले उनका नाम शौर्य-चक्र के लिए रेकमेंड किया गया गया था। पर इंडियन आर्मी ने उनके बलिदान को देखते हुए उन्हें उससे भी बड़े कीर्ति-चक्र से सम्मानित किया।

कीर्ति चक्र, महावीर चक्र के समकक्ष है। यह शांति-काल में दिया जाने वाला वीरता का दूसरा सर्वोच्च पदक है। उनकी माता श्रीमती सुशीला देवी ने 26 जनवरी, 2014 को उनकी तरफ से यह सम्मान ग्रहण किया। केन्द्रीय अर्धसैनिक पुलिस बल (CRPF) ने शहीद भृगुनंदन चौधरी (Constable Bhrigu Nandan Choudhary) की वीरगाथा पर कॉमिक्स भी प्रकाशित किया है।

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गरियाबंद जिला मुख्यालय से तीन किलोमीटर दूर ग्राम सढ़ौली में भृगुनंदन का जन्म 17 दिसंबर, 1982 को एक पुलिस परिवार में हुआ था। उनके पिता स्व. नरहरराम चौधरी छत्तीसगढ़ पुलिस (जीडी) में सिपाही थे। भृगुनंदन के दोस्त बताते हैं कि बचपन में गांव वाले उन्हें भृगु के नाम से पुकारते थे। भृगु बचपन से ही बहादुर थे।

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उनके चाचा बताते हैं कि भृगु को क्रिकेट खेलने का शौक था। एक दिन एक बच्चा नहाते हुए गांव के तालाब में डूबने लगा। उस समय भृगु तालाब के किनारे अपने दोस्तों के साथ क्रिकेट खेल रहे थे। बच्चे की चिल्लाने की आवाज सुनकर भृगु तालाब में कूद गए और डूबते बच्चे को बचाया। भृगु ने प्राथमिक शिक्षा गांव में ही प्राप्त की। उनकी हाई-स्कूल और हायर सेकंडरी की पढ़ाई तितुरडीह (दुर्ग) में हुई थी।