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कभी था कुख्यात नक्सली, आज पर्यावरण के लिए आदिवासी समाज को कर रहा जागरूक

कहानी है इसी साल मार्च में नक्सलियों का साथ छोड़ कर छत्तीसगढ़ पुलिस के सामने आत्मसमर्पण करने वाले कुख्यात इनामी नक्सली अर्जुन की। अर्जुन आज-कल पर्यावरण के लिए काम कर रहा है।

एक समय वह खूंखार नक्सली था। 18 सालों तक बीहड़ों में रह कर उसने सिर्फ खून-खराबा किया। लेकिन कहते हैं न, जब जागो, तभी सवेरा…। तो आज वह उस अंधेरी दुनिया से निकल आया है। आज वह आदिवासी समाज को पर्यावरण के प्रति जागरूक कर रहा है। उन्हें पर्यावरण का महत्व समझा रहा है। कहानी है धुर नक्सल प्रभावित राज्य छत्तीसगढ़ की। कहानी है इसी साल मार्च में नक्सलियों का साथ छोड़ कर छत्तीसगढ़ पुलिस के सामने आत्मसमर्पण करने वाले कुख्यात इनामी नक्सली अर्जुन की। अर्जुन आज-कल पर्यावरण के लिए काम कर रहा है।

5 मई को विश्व पर्यावरण दिवस के दिन अर्जुन ने सुकमा में एक कार्यक्रम का आयोजन करवाया था। इस कार्यक्रम का मकसद लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरुक करना था। अर्जुन के अनुसार, इस कार्यक्रम के माध्यम से खास कर आदिवासियों के बीच पर्यावरण और प्रकृति को लेकर जागरुकता फैलाने की कोशिश की गई। कार्यक्रम के दौरान वहां के अदिवासी समाज के लोग अपनी पारंपरिक वेशभूषा और परिधानों में नजर आए। इस दौरान जागरुकता के साथ-साथ रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया गया था। लोगों ने नृत्य-संगीत का भी जमकर आनंद उठाया।

दरअसल, अर्जुन के पास कई तरह के हुनर थे। वह खुद गीत लिखता था, नाटक में हिस्सा लेता था और अच्छे वक्ता के रूप में भी इसकी पहचान थी। अर्जुन को अपने लिखे गीतों, नाटकों और भाषणों के माध्यम से संगठन तथा अंदरूनी क्षेत्रों के ग्रामीणों को जोड़कर रखने में महारथ हासिल थी। नक्सल संगठन में रहते हुए अर्जुन अपनी कला के ज़रिए लोगों को हिंसक आंदोलन में जोड़ने एवं संगठन को मज़बूत करने में अहम भूमिका निभाता था। आत्मसमर्पण करने के बाद उसका यही हुनर अब लोगों को जागरूक बनाने के काम आ रहा है।

गौरतलब है कि अर्जुन अपने समय के कुख्यात नक्सलियों में से एक था। उसके सिर पर सरकार ने 8 लाख रुपए के इनाम की भी घोषणा की थी। पर नक्सली हिंसा से मोह भंग हो जाने के बाद इसी साल मार्च में अर्जुन ने छत्तीसगढ़ की सुकमा पुलिस के सामने सरेंडर कर दिया था। सरेंडर करते हुए उसने माना था कि नक्सलियों के साथ रहने का कोई फायदा नहीं है। अर्जुन ने कहा था कि नक्सली कोई विकास कार्य नहीं करने देना चाहते हैं। वे सिर्फ का ढोंग करते हैं। खोखली विचारधारा के नाम पर खून खराबा करते हैं और मासूम आदिवासियों को सताते हैं।

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