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Exclusive: जेल में बंद इनामी नक्सलियों को उनके ही संगठनों ने दिखाया ठेंगा, नहीं मिल रही कोई मदद

सांकेतिक फोटो

प्रतिबंधित नक्सली (Naxalites) संगठन भाकपा माओवादी का नक्सली सुनील मांझी, 3 साल पहले डुमरी के अकबकीटांड़ से भारी मात्रा में हथियारों के साथ गिरफ्तार हुआ था। 

रांची: झारखंड में नक्सलियों (Naxalites) के खिलाफ अभियान जारी है। ऐसे में जो नक्सली जेल में बंद हैं, उन्हें उनके संगठनों ने भी ठेंगा दिखा दिया है। ऐसे में जेल में बंद नक्सली निराश दिख रहे हैं और अपने किए पर पछता रहे हैं।

एक समय था जब इनामी नक्सली सुनील मांझी के नाम से पारसनाथ से लेकर सारंडा तक लोग कांपते थे, लेकिन आज इस नक्सली से इसके संगठन ने भी मुंह मोड़ लिया है।

बता दें कि प्रतिबंधित नक्सली (Naxalites) संगठन भाकपा माओवादी का नक्सली सुनील मांझी, 3 साल पहले डुमरी के अकबकीटांड़ से भारी मात्रा में हथियारों के साथ गिरफ्तार हुआ था। इसके बाद पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था।

जेल भेजे जाने के बाद नक्सली संगठन ने इस इनामी नक्सली से अपना किनारा कर लिया। हालत ये है कि इस नक्सली के परिजनों ने भी इसका साथ छोड़ दिया है।

जानकारों के अनुसार, भाकपा माओवादी संगठन अब पहले की तरह नहीं रहा। एक समय था जब कोई भी नक्सली गिरफ्तार होता था तो संगठन पर्दे के पीछे से उसे रिहा करवाने के लिए एड़ी चोटी लगा देता था। लेकिन समय के साथ संगठन ने गिरफ्तार नक्सलियों से अपना किनारा कर लिया।

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जिन नक्सलियों (Naxalites) को पुलिस ने गिरफ्तार किया है, उन्हीं नक्सलियों के इशारे से अन्य बड़े नक्सली पुलिस के द्वारा पकड़े जा रहे हैं। क्योंकि गिरफ्तार नक्सलियों को संगठन से जुड़ी सारी जानकारी होती है।

अगर बात की जाए सुनील मांझी की, तो एक दौर में संगठन में उसकी अच्छी पकड़ मानी जाती थी। उस पर रांची, गिरिडीह, बोकारो समेत कई जिलों में नक्सली हिंसा के दर्जनों मामले दर्ज हैं।

जानकार बताते हैं कि सुनील मांझी झारखंड और बिहार का भाकपा माओवादी की स्पेशल कमेटी का सदस्य था, जिस पर सरकार ने 25 लाख का इनाम रखा था। भाकपा माओवादी के शीर्ष नेता प्रशांत बोस और मिसिर बेसरा का यह बेहद करीबी माना जाता था।

लेकिन पूरा जीवन नक्सली संगठन में लगाने के बावजूद, जब वह जेल गया तो संगठन ने उससे मुंह फेर लिया। फिलहाल नक्सली संगठन द्वारा उसे कोई मदद नहीं मिल रही है।

सुनील मांझी जेल में तनाव में है, हालांकि सरकार ने उसे अपनी तरफ से वकील मुहैया करवाया है। 25 लाख के इनामी नक्सली सुनील मांझी को 3 साल पहले 5 मार्च 2018 को अपने अन्य 16 हार्डकोर माओवादियों के साथ गिरफ्तार किया गया था। इसमें 5 लाख का इनामी नक्सली दिनेश मांझी उर्फ चार्लीस और दिनेश मुर्मू प्रमुख था। इस दौरान पुलिस ने इनकी निशानदेही पर हथियारों का जखीरा भी बरामद किया था।

वहीं अगर बात अन्य गिरफ्तार नक्सलियों की जाए, तो झारखंड के विभिन्न जेलों में बंद कमांडर लेवल के लगभग दर्जनों नक्सली मौजूद हैं। लेकिन भाकपा माओवादी संगठन से संबंध रखने वाले किसी भी नक्सली को संगठन द्वारा अब कोई सहयोग नहीं मिल रहा है।

जानकार बताते हैं कि संगठन के कई बड़े नक्सली पुलिस के हत्थे चढ़ जाने के कारण संगठन को आर्थिक नुकसान के साथ-साथ कैडर का भी नुकसान हुआ है। लगातार पुलिसिया कार्रवाई से संगठन में अब कुख्यात नक्सलियों की संख्या घटती जा रही है। पहले की अपेक्षा संगठन को लेवी भी नहीं मिल पा रही है।

सूत्रों के मुताबिक, जेल में बंद नक्सली अब लोगों से ये कहते नजर आते हैं कि कभी भी नक्सलियों के चंगुल में मत आना, वर्ना मेरी तरह अंजाम होगा।