इसी बात से लोकतंत्र की असली ताकत का अंदाजा लगाया जा सकता है कि जो कभी खुद चुनाव (Voting) का बहिष्कार करता था, मतदान नहीं करने के लिए लोगों को डराता-धमकाता था, उसका पूरा परिवार चुनाव में वोट देने के लिए कतार में खड़ा दिखा।
हम बात कर रहे हैं दुर्दांत नक्सली कुंदन पाहन की, जिस पर पुलिस ने कभी 15 लाख का इनाम घोषित कर रखा था। जिसे पकड़ने के लिए पूरा पुलिस महकमा लगा हुआ था। लेकिन सरेंडर करने के बाद अब वह खुद चुनाव लड़ रहा है। नक्सल प्रभावित तमाड़ का बारीगड़ा, यह एक समय में खौफ का पर्याय रहे कुंदन पाहन का गांव है। 7 नवंबर को जब दूसरे चरण का मतदान हो रहा था, उसका पूरा परिवार वोट देने (Voting) के लिए कतार में खड़ा था। पूरा गांव वोट देने के लिए बूथ पर कतारबद्ध खड़ा था। सभी अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे।
जेल में बंद नक्सली कुंदन पाहन की पत्नी आशा पहली बार अपने मताधिकार का प्रयोग करने रांची से अड़की पहुंची थी। उत्क्रमित राजकीय मध्य विद्यालय में बने बूथ से 20 से 25 कदम दूर कुंदन पाहन का घर था। दोपहर करीब एक बजे कुंदन का पूरा परिवार मतदान (Voting) करने जा रहा था। सबसे आगे उसके पिता चल रहे थे। कुंदन की पत्नी आशा ने कहा कि वह पहली बार वोट दे रही है। वह विकास और शांति के लिए वोट दे रही है। उसने बताया कि वोट देने के लिए वह रांची से आई है।
कुंदन पाहन के पिता नारायण पाहन की उम्र 72 वर्ष है। वे हाथ में वोटर पर्ची और मतदाता पहचान पत्र लेकर वोट देने के लिए तैयार थे। उनके साथ कुंदन पाहन का भाई एतवा पाहन के अलावा चाचा, चाची और चचेरी बहन ने भी वोट दिया। कुंदन के पिता नारायण पाहन कहते हैं कि वे पहले भी मतदान (Voting) करते थे। पर बीते कुछ सालों में कब मतदान किया था, उन्हें ठीक से याद नहीं। एक बार फिर से मतदान करके वे काफी खुश थे। इस धुर नक्सल प्रभावित इलाके में सुरक्षा बल के जवान और मतदानकर्मी करीब 15 किलोमीटर की दूरी पैदल तय कर चुनाव कराने पहुंचे थे।
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