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छत्तीसगढ़: 5 लाख के इनामी नक्सली ने खोली नक्सलवाद की पोल, कहा- हम पैदा नहीं कर सकते बच्चा

भैरमगढ़ एरिया कमेटी सदस्य और नक्सली कमांडर गंगू उर्फ लखन

भैरमगढ़ एरिया कमेटी सदस्य और नक्सली (Naxalites) कमांडर गंगू उर्फ लखन ने बताया कि नक्सली संगठन अपने सदस्यों को शादी करने की इजाजत तो देता है लेकिन बच्चा पैदा करने की इजाजत नहीं देता।

दंतेवाड़ा: छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में लोन वर्राटू अभियान के तहत नक्सली (Naxalites) लगातार सरेंडर कर रहे हैं। ऐसे में गुरुवार को सरेंडर करने वाले 5 लाख रुपए के इनामी नक्सली गंगू ने एक बड़ा खुलासा किया है।

भैरमगढ़ एरिया कमेटी सदस्य और नक्सली (Naxalites) कमांडर गंगू उर्फ लखन ने बताया कि नक्सली संगठन अपने सदस्यों को शादी करने की इजाजत तो देता है लेकिन बच्चा पैदा करने की इजाजत नहीं देता। इसलिए संगठन नक्सलियों की नसबंदी कराने उन्हें आंध्रप्रदेश भेज देते हैं। जब नक्सलियों की नसबंदी हो जाती है और उन्हें इस बात का सर्टिफिकेट मिल जाता है, तभी नक्सली संगठन उन्हें शादी करने की इजाजत देता है।

इनामी नक्सली गंगू ने बताया कि वह बच्चे का जन्म चाहता था और खुद की जान भी बचाना चाहता था, इसलिए उसने पुलिस के सामने सरेंडर किया। उसने कहा कि वह अपने गांव में परिवार के साथ जिंदगी बिताना चाहता है।

नक्सली गंगू ने बताया कि वह 1997 में बाल सदस्य के रूप में नक्सली संगठन में भर्ती हुआ था। 2009 में उसे एक महिला साथी के साथ प्रेम हुआ तो उसने अपने सीनियर नक्सलियों के सामने शादी करने की इच्छा जाहिर की। लेकिन सीनियर नक्सलियों ने पहले शादी करने की इजाजत नहीं दी। हालांकि बाद में वे इस बात पर राजी हुए कि अगर वह बच्चा पैदा नहीं करेगा और नसबंदी करवा लेगा तो शादी कर सकता है।

इसलिए नक्सलियों ने गंगू को नसबंदी के लिए आंध्र प्रदेश भेज दिया और वहां से डॉक्टर का प्रमाण पत्र लेने के बाद गंगू शादी कर पाया। नसबंदी की वजह से गंगू बच्चा नहीं कर सकता लेकिन वह अपनी पत्नी के साथ रह रहा है।

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गंगू ने बताया कि शादी के बाद उसकी पत्नी की तबीयत खराब हुई तो नक्सलियों ने इलाज नहीं करवाने दिया और उसकी हत्या की भी साजिश रची। इसलिए उसने सरेंडर करने का फैसला लिया।

इस मामले के बारे में एसपी अभिषेक पल्लव ने बताया कि नक्सली गंगू, बड़े नक्सलियों से पीड़ित था, इस बीच उसने सरेंडर करने की इच्छा जताई। इसके बाद पुलिस ने 40 किलोमीटर पैदल चलकर उसे नक्सलियों के चंगुल से छुड़ाया और सरेंडर करवाया। पुलिस के जवान गांववालों का हुलिया बनाकर जंगल में घुसे, नहीं तो नक्सली उन्हें पहचान लेते और हमला कर देते।