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नक्सलियों को जड़ से उखाड़ने के लिए बहुत जरूरी हैं ये बातें, रखना होगा खास ध्यान

सांकेतिक तस्वीर

जो 8 टीमें बीजापुर के लिए निकली थीं, उनमें से 2 टीमों को 2 अप्रैल की रात बीजापुर में नक्सल (Naxalites) ऑपरेशन के लिए भेजा गया। इन टीमों को अलीपुडा और जोनागुडा गांव जाने का टारगेट मिला था। ये वे जवान हैं जो फायरिंग की चपेट में आए।

नई दिल्ली: छत्तीसगढ़ के बीजापुर और सुकमा बॉर्डर के पास 3 अप्रैल 2021 को हुए नक्सली हमले में 22 जवान शहीद हुए थे। यह जवान कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (माओवादी) के एंबुश का शिकार हुए थे। बता दें कि कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (माओवादी) एक प्रतिबंधित संगठन है जोकि देश के नक्सल प्रभावित राज्यों जैसे छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार, महाराष्ट्र और ओडिशा आदि में सक्रिय है।

नक्सलियों (Naxalites) के लगातार बढ़ते मूवमेंट और बीजापुर-सुकमा बॉर्डर के पास हुए नक्सली हमले ने कई सवाल खड़े किए हैं। इसमें सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या भारत के पास इन नक्सलियों से लड़ने के लिए एक सफल रणनीति है? वह भी ऐसे समय में, जब पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने नक्सलवाद को देश की सबसे बड़ी आंतरिक सुरक्षा से जुड़ी समस्या बताया था। शायद यह रणनीति की कमी हो सकती है क्योंकि नक्सली बेखौफ वारदातों को अंजाम दे रहे हैं और सुरक्षाबलों के लिए खतरा बन रहे हैं।

DeepStrat के लेख के मुताबिक, हम यह समझने की कोशिश करेंगे कि किस तरह नक्सलियों को एक सोची समझी रणनीति के तहत हराया जा सकता है। इस लेख में सीआरपीएफ और राज्य पुलिस के रोल पर भी प्रकाश डाला गया है।

सीआरपीएफ एक फेडरल पुलिस फोर्स है, जिसकी प्राथमिक भूमिका सशस्त्र विद्रोहियों का मुकाबला करना है और कानून- व्यवस्था के रखरखाव के लिए देशभर में राज्य सरकारों की मदद करना है।

सामरिक रूप से आगे बढ़ना होगा

सुकमा और बीजापुर बॉर्डर के पास कुख्यात नक्सली (Naxalites) हिडमा को पकड़ने के लिए एक ऑपरेशन लॉन्च किया गया था। इस ऑपरेशन में CRPF, कोबरा यूनिट, स्टेट पुलिस फोर्स, स्पेशल टास्क फोर्स (STF) और डीआरजी (DRG) शामिल थी। कुल 8 टीमें बीजापुर ऑपरेशन और 2 टीमें सुकमा के लिए निकली थीं। सुरक्षाबलों को इंटेलीजेंस मिला था कि कुख्यात नक्सली हिडमा यहां मौजूद है।

जो 8 टीमें बीजापुर के लिए निकली थीं, उनमें से 2 टीमों को 2 अप्रैल की रात बीजापुर में ऑपरेशन के लिए भेजा गया। इन टीमों को अलीपुडा और जोनागुडा गांव जाने का टारगेट मिला था। ये वे जवान हैं जो फायरिंग की चपेट में आए। घायल जवानों से मिली जानकारी के मुताबिक, ये साफ है कि नक्सली (Naxalites) सुरक्षाबलों की इन टीमों को ट्रैक कर रहे थे। इस ऑपरेशन में मानव रहित हवाई वाहन (हेरॉन) की सेवाएं ली गई थीं। नक्सली फिर भी लंबे समय तक घात लगाने में कामयाब रहे। जब सुरक्षाबलों की टीमें झीरागांव औप टेकलागुदेम में पहुंचीं तो उन्हें ये गांव खाली मिले। यहीं पर टीम कमांडर्स को अलर्ट हो जाना चाहिए था। यही बात जवानों के लिए घातक सिद्ध हुई।

सीआरपीएफ की एक कंपनी एंबुश की इस साइट से 4 किलोमीटर दूर थी। हालांकि रिपोर्ट्स इस बात की ओर इशारा करती हैं कि एंबुश के काफी घंटों बाद इस शिविर से साइट पर कोई रीइनफोर्समेंट नहीं भेजा गया था। इस वजह से शहीद जवानों के शरीर रातभर वहीं रहे और नक्सली उनके हथियारों को लूट ले गए।

ऐसा ही एक एंबुश 6 अप्रैल 2010 को बनाया गया था, जिसमें हमारे 75 सीआरपीएफ के जवान और एक छत्तीसगढ़ पुलिस का जवान शहीद हो गया था। उस समय भी एंबुश को लीड करने का तरीका इस घटना के समान ही था। सीआरपीएफ को उस समय 72 घंटे के लिए एरिया डोमिनेशन पेट्रोल पर जाने के लिए कहा गया था जोकि जो नीति के विरुद्ध है। आमतौर पर, एरिया डोमिनेशन पेट्रोल कई घंटों तक रहती है और घात से बचने के लिए इसमें कई टीमें शामिल होती हैं। खबर के मुताबिक, ताम्बेटला क्षेत्र के आसपास जंगलों में घात लगाकर रहने से पहले बल घूमता रहा। स्पॉट रिपोर्ट्स के मुताबिक, पुलिसकर्मी घात लगाने में नाकाम रहे और माओवादियों द्वारा बिछाए गए एक योजनाबद्ध जाल में फंस गए और शहीद हो गए।

नक्सलियों को समझना होगा

हथियारों से लैस नक्सलियों (Naxalites) को जीतने के लिए उन्हें समझना बहुत जरूरी है। इसका मतलब न केवल उनकी लड़ाई की रणनीति का अध्ययन करना है, बल्कि उनके नेतृत्व, उनकी विचारधाराओं और कैडरों के बारे में भी जानकारी रखना है। कई राज्य दशकों से नक्सलियों को समझने की कोशिश तो कर रहे हैं लेकिन इस बारे में संस्थागत ज्ञान की भारी कमी है।

एक अध्ययन में साल 2010 में ये दिलचस्प बात सामने आई थी कि कई मौकों पर माओवादी (Naxalites) कैडर छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार, ओडिशा और महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में रहने वाली स्थानीय आदिवासियों से काम लेते हैं।

इन खुफिया रिपोर्टों के सामाजिक-आर्थिक आंकड़ों ने यह भी बताया कि कई आदिवासी बाद में सीपीआई (माओवादी) में शामिल भी हो जाते हैं। यह मुख्य रूप से राज्य के आंतरिक हिस्सों में सरकारी मशीनरी की गैरमौजूदगी की वजह से है।

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कई खुफिया रिपोर्टों के अनुसार, अब यह स्पष्ट है कि माओवादियों (Naxalites) का शीर्ष नेतृत्व आंध्र प्रदेश और तेलंगाना जैसे पड़ोसी राज्यों से आया है। कई अनाथ जो बाल दलम के रूप में जाने जाने वाले समूहों में शामिल हो जाते हैं, उन्हें भी नेतृत्व करने के लिए तैयार किया जाता है।

हालांकि, माओवादी कैडर में ऊपरी और मध्यम नेतृत्व के बीच एक विशिष्ट अंतर है। मध्य नेतृत्व में लगभग सभी आदिवासी है। इस विशिष्ट जनजातीय की पहचान करने और उन्हें समाज में स्थान देने से उन्हें माओवादी रैंकों से दूर किया जा सकता है।

CRPF में सुधार करना

सीआरपीएफ में नेतृत्व संकट को दूर करने की जरूरत है। इसमें काम करने वाले जवानों के लिए इसकी कांस्टेबुलरी और ऑफिसर कैडर की कम उम्र की रूपरेखा को ध्यान में रखते हुए डिजाइन करने की आवश्यकता है। एक छोटी प्रोफाइल का जवान भी ट्रेनिंग के बाद बेहतर नेतृत्व कर सकता है।

हालांकि COBRA बटालियनों को एक विशेष बल के रूप में उठाया गया था, हालांकि, इसे छोटी टीम के संचालन या स्थानीय आबादी के साथ काम करने में थोड़ा ध्यान देने की जरूरत है। 

इस समय, सीआरपीएफ बटालियन भी दूर-दराज के क्षेत्रों की कंपनियों के साथ फैली हुई हैं। उदाहरण के लिए, दो बटालियनें विशेष रूप से माओवाद विरोधी अभियानों के लिए उत्तर प्रदेश राज्य में तैनात हैं, हालांकि राज्य में कोई इनफॉर्म्ड माओवादी गतिविधि नहीं है। इसी प्रकार, जम्मू और कश्मीर राज्य में बल को भारी रूप से तैनात किया गया है, जिसमें एक बहुत ही अलग तरह का सशस्त्र विद्रोह है और कोई भी क्षेत्र-विशिष्ट प्रशिक्षण नहीं है जो क्षेत्र में तैनात होने से पहले बल और कर्मियों को प्रदान किया जाता है।

मॉडर्न ट्रेनिंग

अगर नक्सलियों (Naxalites) के खिलाफ ऑपरेशन में किसी से प्रेरणा लेनी है तो 1989 में आंध्र प्रदेश में माओवादी खतरे से निपटने के लिए बनाए गए बल ग्रेहाउंड को फॉलो किया जा सकता है। इन्होंने खुफिया जानकारी से नक्सल अभियानों में काफी सफलता पाई थी। ग्रेहाउंड ने नक्सलियों के खिलाफ गहरे हमले किए और ज्यादा समय के लिए माओवादी कैडरों का पीछा किया।

राज्य बलों को ट्रेनिंग देने के लिए एक प्रभावी सिद्धान्त की भी जरूरत है क्योंकि भारतीय सुरक्षाबलों को बड़ी संख्या में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिसके कारण ट्रेनिंग और ऑपरेशनल रिजल्ट्स के लिए काफी इंतजार करना पड़ रहा है।

वायु शक्ति का उपयोग करना

नक्सलियों (Naxalites) के खिलाफ अभियान में वायुसेना का सही से इस्तेमाल नहीं किया जा सका है। कई कामों के लिए वायुसेना की जरूरत है, लेकिन धरातल पर अभी इसकी कमी है। बीजापुर में जिस तरह का नक्सली (Naxalites) हमला हुआ, वैसा आगे ना हो, इसके लिए वायुसेना का भी प्रभावी रूप से इस्तेमाल करना होगा और इससे जुड़ी रणनीति बनानी होगी। सशस्त्र हेलिकॉप्टर जंगल में माओवादी खतरों से निपटने में एक निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं।

इंटेलीजेंस बेहतर करना

माओवादी खतरे से निपटने के लिए इंटेलीजेंस नेटवर्क को मजबूत बनाना होगा। यह कहा जाता रहा है कि राज्य और संघीय स्तर पर स्थानीय पुलिस, खुफिया विभाग, सहायक खुफिया ब्यूरो और खुफिया ब्यूरो में सुधार की जरूरत है। बेहतर इंटेलीजेंस के लिए लोकल आबादी के साथ अच्छे संबंधों की भी आवश्यकता होती है। राज्यों के बीच खुफिया और डेटाबेस साझा करने में समन्वय की एक अलग कमी है जो कि संघीय एजेंसियों के साथ भी है।

एक व्यापक रणनीति

आखिर में, सरकार और माओवादी प्रभावित राज्यों को माओवादी खतरे के खिलाफ एक व्यापक रणनीति बनाने के लिए मिलकर काम करने की आवश्यकता है। इसका मतलब यह है कि संकट से निपटने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति सुनिश्चित करने के लिए सर्वदलीय राजनीतिक सहमति का निर्माण किया जाए और निश्चित समयसीमा में टारगेट बनाए जाएं।