वो कहते हैं न कि कोई भी घटना सीख और तजुर्बा दोनों ही देती है। ऐसा ही कुछ भारत के साथ हुआ कारगिल युद्ध (Kargil War) में। वैसे तो हम 1999 का कारगिल युद्ध जीत गए थे, पर जीत के साथ ही भारत को उस युद्ध के दौरान कुछ सीख भी मिली थी। उसी सीख का फायदा गलवान घाटी (Galwan Valley) में चीनी सैनिकों से हुए संघर्ष के दौरान भारतीय सैनिकों को मिला। जवानों की पर्याप्त संख्या में तैनाती इस बात का उदाहरण है। बता दें कि इस घटना के बाद लेह में डिवीजन की जगह अब 14 कोर का गठन कर सैन्य तैनाती बढ़ा दी गई है।
सेना में लेफ्टिनेंट जनरल पद से रिटायर्ड राकेश शर्मा बताते हैं कि कारगिल (Kargil War) की खामियों से सीख की बदौलत आज गलवान में हमारी स्थिति मजबूत है। हाई एल्टीट्यूड वारफेयर में पारंगत होना और खुफिया तंत्र में सुधार होना, यह सब कारगिल की ही देन है। कारगिल से सीख लेकर इंटीग्रेटेड ज्वॉइंट रेस्पांस का सुझाव आया, जो अब अमल में लाया जा रहा है। यही वजह है कि गलवान (Galwan Valley) में तीनों सेनाओं की पूरी तैयारी देखी जा सकती है। पहले लद्दाख तक सप्लाई के लिए एक ही रास्ता था। पर, अब जोजिला के साथ-साथ रोहतांग का रास्ता भी हमारे पास विकल्प के रूप में मौजूद है।
रिटायर्ड कर्नल एसएस पठानिया बताते हैं कि पहले के मुकाबले LAC पर हमारी सेना की ताकतें बढ़ी हैं। हमारी खुफिया ताकतें तो बढ़ी ही हैं, साथ ही फायर एंड फ्यूरी कॉर्प्स का गठन कर सेना को और मजबूत बनाया गया है। सेना की तैयारियों का फायदा भी देखने को मिला है।
कारगिल युद्ध (Kargil War) के दौरान 14 जैक प्लाटून का नेतृत्व कर रहे कैप्टन अर्जुन सिंह बताते हैं कि उस वक्त किसी को युद्ध का अनुभव नहीं था। संसाधन कम थे और यह युद्ध हमने हौसले के दम पर जीत लिया था। पहले श्रीनगर से ही पूरे इलाके की निगरानी की जाती थी। बाद में कमान की स्थापना हुई। पहले सेना के पास सीमित हथियार थे। पर, अब साजो-समान में वृद्धि कर दी गई है। वहीं लद्दाख में सैनिकों की संख्या भी बढ़ा दी गई है।