यह बात पिछले कई सालों से सामने आ रही थी कि सरकार के कड़े रवैये की वजह से नक्सलियों (Naxals) की कमर टूट चुकी है। अब इस बात प्रमाण भी मिला है। खुलासा हुआ है कि पैसों की किल्लत से जूझ रहे नक्सली अब खेती-किसानी करवा रहे हैं। इस बात का पर्दाफाश उस वक्त हुआ जब छत्तीसगढ़ (Chhattisgath) के दंतेवाड़ा जिले के बारसूर-चित्रकोट रोड से नक्सली सहयोगी को पकड़ा गया और उसके पास से ट्रैक्टर भी जब्त किया गया है।
माड़ के जंगल में नक्सली (Naxali) हाइब्रिड खेती के लिए पोटाश-यूरिया का भंडारण करते हैं। सूत्रों की मानें तो नक्सली बस्तर और नारायणपुर जिले से यूरिया की खेप माड़ पहुंचाते हैं, जिसका उपयोग खेती के साथ विस्फोटक के लिए करते हैं। ठेकेदारों से लेवी वसूलने वाले नक्सली अब खेती-किसानी भी करने लगे हैं। वे जैविक और आधुनिक दोनों तरह की खेती कर रहे हैं। इसके लिए परंपरागत खाद, बीज व रोपाई-बुआई के साथ ट्रैक्टर और रासायनिक खाद का उपयोग कर रहे हैं।
कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में बताया जा रहा है कि साल 2016 में जब नोटबंदी हुई थी उसी वक्त से नक्सलियों (Naxals) की स्थिति खराब होने लगी थी। इसके अलावा तेंदूपत्ता और मनरेगा के लिए ऑनलाइन श्रमिकों को सीधे खाते में पैसे पहुंचने लगे हैं जिससे नक्सली अब खाली हाथ रह गए हैं।
बताया जा रहा है कि नक्सली अपने आधार इलाके में पानी के लिए तालाब और बोर भी करवा चुके हैं। यह नक्सली (Naxalites) अपनी उपज को ग्रामीणों के माध्यम से बाजार तक पहुंचवाते हैं। माड़ के अलावा कटेकल्याण, बैलाडिला की तराई, सुकमा व बीजापुर बार्डर के बड़े भूभाग में खेती कर रहे हैं।
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कहा जा रहा है कि नक्सली (Naxali) ट्रैक्टरों से खेती-किसानी के साथ अंदरूनी इलाकों में चल रहे निर्माण कार्यों के लिए भी ठेकेदारों को किराए पर देते हैं। हाट- बाजार सामान पहुंचाने के अलावा ग्रामीणों के शादी-ब्याह और पंचायतों के कार्य में भी इसका उपयोग होता है।
पुलिस का मानना है कि नक्सली कोर एरिया में ग्रामीणों से खेती करवाते हैं। नोटबंदी और तेंदूपत्ता खरीदी से उनके आर्थिक स्रोत कमजोर होने से अंदरूनी इलाकों में ग्रामीणों के साथ खेती-किसानी कर नक्सली 40 से 50 प्रतिशत हिस्सा ले रहे हैं। आपको बता दें कि इससे पहले खुद की खेती का एक वीडियो भी नक्सलियों (Naxals) ने जारी किया था।