छत्तीसगढ़ में पुलिस-प्रशासन ने 500 नक्सलियों को सरेंडर (Surrender) कराने की योजना तैयार की है। यहां पुलिस (Police) को इनपुट मिला है कि दंतेवाड़ा जिले के करीब 1600 गांव वाले नक्सली (Naxals) बन चुके हैं। खास बात यह है कि नक्सली बन चुके सभी ग्रामीणों की पुलिस ने पहचान भी कर ली है। लिहाजा यहां पुलिस ने पुनर्वास अभियान को ज्यादा पारदर्शी बनाकर 500 नक्सलियों को सरेंडर कराने का टारगेट सेट किया है।
आपको बता दें कि ‘लोन वर्राटू’ (घर लौटो अभियान) से संबंधित पाम्पलेट्स और फ्लेक्स पुलिस ने नक्सलियों (Naxalites) की सूची बनाने के बाद जून के पहले सप्ताह में ही लगाना शुरू कर दिया था। लेकिन इसके नतीजे माह के अंतिम सप्ताह से आने शुरू हुए और पिछले 16 दिनों के अंदर अबतक 58 नक्सलियों ने सरेंडर (Surrender) कर दिया है। लेकिन साल के अंत तक का टारगेट 500 नक्सलियों के सरेंडर का है।
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जिन 500 नक्सलियों को सरेंडर (Naxals Surrender) कराने की योजना तैयार की गई है उसमें 200 सशस्त्र लड़ाके हैं। दंतेवाड़ा के पुलिस अभिषेक पल्लव ने ‘द प्रिंट’ से बातचीत में बताया, ‘आज तक प्रदेश में नक्सलियों की सही संख्या की कोई जानकारी नहीं थी। चाहे कोर्ट हो या फिर कोई जांच कमीशन, सबके सामने हमेशा अनुमानित आंकड़े ही आते थे। दंतेवाड़ा ऐसा पहला जिला है जहां हमने सभी 35-40 नक्सल प्रभावित गांवों से 1600 नक्सलियों की पहचान की है जिनमें से साल के अंत तक 500 के सरेंडर का टारगेट है। ‘लोन वर्राटू’ की यह पहली आवश्यकता थी।’
इस अभियान के तहत सरेंडर (Surrender) करने वाले नक्सलियों को पहले की तरह 10 हजार रुपए त्वरित राहत के रूप में दिया जाता है। इसके बाद उनके रोजगार की व्यवस्था स्व सहायता समूह बनाकर की जाएगी। पुलिस ने इन नक्सलियों के पोस्टर बनवाए हैं और ज्यादा से ज्यादा जगहों पर उन्हें चस्पा कर उनकी पहचान की जा रही है।
पहले जब पुलिस नक्सलियों के खिलाफ कार्रवाई करती थी तो हम पर आम ग्रामीणों को मारने, अत्याचार और बर्बरता के आरोप लगते थे। इनामी नक्सली को भी गिरफ्तार और मारने पर विरोध होता था। यह हमारे लिए बहुत एम्बरेसिंग होता था। लेकिन अब ग्रामीणों को पूरी जानकारी पहले ही दे दी गई है। अब नक्सलियों (Naxals) के घरों में पम्पलेट्स लगाकर उनके परिजनों से पावती भी ली जा रही है। इससे नक्सलियों के खिलाफ कार्रवाई में कोई उन्हें आम ग्रामीण नहीं बता सकता।’
एक अन्य पुलिस अधिकारी ने बताया की इस पारदर्शिता के चलते नक्सली ग्रामीणों को गुमराह नहीं कर पा रहे और न ही अभियान के खिलाफ अभी तक कोई पर्चा जारी किया है।