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हजारों फीट की ऊंचाई पर देश की रक्षा करने वाले जवानों को क्यों दिया जाता है वायु सेना पदक?

सांकेतिक तस्वीर

यह पदक असाधारण कर्तव्यपरायणता या अदम्य साहस के ऐसे व्यक्तिगत कारनामे के लिए प्रदान किया जाता है जो वायु सेना के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण हों। यह पदक मरणोपरांत भी प्रदान किया जाता है।

भारतीय वायु सेना ने जब-जब दुश्मनों से लोहा लिया है, भारत को जीत हासिल हुई है। युद्ध में वायु सेना की भूमिका हमेशा से अहम रही है। वायु सेना के कई जवानों ने हजारों फीट की ऊंचाई पर बेखौफ होकर दुश्मनों से लोहा लिया है। वायु सेना के जवानों के अभूतपूर्व शौर्य और पराक्रम के लिए उन्हें  ‘वायु सेना पदक’ से सम्मानित किया जाता है।

इसे सामान्यत शांति काल में उल्लेखनीय सेवा के लिए दिया जाता है। कई मौकों पर यह युद्ध काल में भी दिया गया है। पिछले एक दशक में ये सम्मान 2 विभागों में, वीरता और समर्पण के लिए दिया जाता रहा है। इस पदक में पांच नोकों वाला सितारा बना होता है, यह स्टैंडर्ड चांदी का बना होता है और इसका व्यास 35 मिमी का होता है।

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यह पदक 3 मिमी चौड़ी धातु की पट्‌टी से जुड़े छल्ले में लगा होता है, इस पट्‌टी पर अद्गाोक की पत्तियां बनी होती हैं। इसके सामने के हिस्से पर बीचों-बीच राज्य चिन्ह बना होता है, जिसके चारों ओर पत्तियों की माला बनी होती है। इसके पीछे की ओर हिमालयन बाज बना होता है और इसके नीचे पदक का नाम प्रिंट किया गया होता है।

बात करें रिबन की तो इसका फीता 32 मिमी चौड़ा होता है, जिस पर केसरिया और हल्के स्लेटी रंग की 3-3 मिमी चौड़ी रेखाएं बनी होती हैं, ये रेखाएं दाएं से बाईं ओर बनी होती हैं।

यह पदक असाधारण कर्तव्यपरायणता या अदम्य साहस के ऐसे व्यक्तिगत कारनामे के लिए प्रदान किया जाता है जो वायु सेना के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण हों। यह पदक मरणोपरांत भी प्रदान किया जाता है। अगर किसी जवान को अगर दूसरी बार भी इस पदक सम्मानित किया जाए तो उनके पहले वाले पदक पर बार जोड़ दिया जाता है।