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Kargil War: मश्कोह घाटी में पाक घुसपैठियों को खदेड़ने वाले शहीद वीरेंद्र सिंह की कहानी, दुश्मनों को ऐसे सिखाया था सबक

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Kargil War: आर्मी की ट्रेनिंग पूरी होने के 6 महीने बाद ही उन्हें 21 साल की उम्र में कारगिल युद्ध में जंग के मैदान में दुश्मनों से लोहा लेना पड़ा। उनकी तैनाती मश्कोह घाटी में थी।

कारगिल युद्ध (Kargil War) में भारत ने पाकिस्तान को हराकर पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा था। भारत ने दिखा दिया था कि उनकी जमीन पर कब्जा करने की चाह रखने वालों को किस तरह से नेस्तनाबूद किया जाएगा। इस युद्ध में हमारे जवानों ने साहस और बलिदान का परिचय देकर दुश्मनों को भगा-भगाकर मारा था।

युद्ध (Kargil War) में एक जवान ऐसे थे जिन्होंने गोली लगने के बावजूद हिम्मत नहीं हारी और कई पाकिस्तानी जवानों को ढेर कर दिया था। इस शहीद का नाम वीरेंद्र सिंह था। फरीदाबाद के गांव मोहना निवासी वीरेंद्र अक्टूबर, 1998 में फौज में भर्ती हुए थे। उन्हें जाट रेजिमेंट में सिपाही का पद मिला था।

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आर्मी की ट्रेनिंग पूरी होने के 6 महीने बाद ही उन्हें 21 साल की उम्र में कारगिल युद्ध में जंग के मैदान में दुश्मनों से लोहा लेना पड़ा। उनकी तैनाती मश्कोह घाटी में थी। बटालियन को आदेश मिलने पर 17 जाट बटालियन के 25 जवानों की टुकड़ी ने 5 जुलाई की रात पिलर नंबर 2 पहाड़ी पर चढ़ाई शुरू कर दी।

दुश्मन ऊंचाई पर थे तो उन्होंने भारतीय जवानों को आता देख लिया। फिर देखते ही देखते ही ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू हो गई। इसी दौरान एक गोली वीरेंद्र को भी लगी। गोली लगने के बावजूद वीरेंद्र ने हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने कई पाक जवानों को मौत के घाट उतार दिया।

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उन्होंने तड़के पांच बजे अगले दिन 6 जुलाई तक लड़ाई लड़ी। हालांकि, इस दौरान उनके साथी जवान उनके शरीर में लगी गोली को निकाल रहे थे तभी उनके पास एक गोला आकर गिरा और वह शहीद हो गए।