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सीने में फौलाद और वतन पर मर मिटने का जज्बा, जानें कौन हैं कारगिल के हीरो राजेश यादव

राजेश यादव हरियाणा के नारनौल शहर के रहने वाले हैं।

Kargil War: हम पीठ पर 25-27 किलो का भार लेकर चलते रहे। 50 मीटर खड़ी चट्टान पर चढ़ने के दौरान ऊपर से फायरिंग हो रही थी लेकिन हमने बेस बनाकर दुश्मनों का सामना किया।

भारत और पाकिस्तान के बीच साल 1999 का कारगिल युद्ध (Kargil War) भारतीय सेना (Indian Army) के शौर्य की कहानी को बखूबी बयां करता है। इस युद्ध में हमारे वीर सपूतों ने दुश्मनों को भगा-भगाकर मारा था। जवानों ने हर मोर्चे पर पाकिस्तानी सैनिकों को विफल साबित किया था।

इस युद्ध में एक जवान ने अपने शानदार प्रदर्शन की कहानी साझा की है। इस जवान का नाम राजेश यादव (Rajesh Yadav) है और वे हरियाणा के नारनौल शहर के रहने वाले हैं। मीडिया से बातचीत में कारगिल युद्ध (Kargil War) के दिनों को याद करते हुए उन्होंने बताया है कि युद्ध के दिन बेहद चुनौती भरे थे लेकिन सीने में फौलाद और वतन पर मर मिटने का जज्बा था।

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यादव के मुताबिक, “दुश्मनों को अपनी धरती से वापस खदेड़ना ही एकमात्र लक्ष्य था। हम 810 मीटर की रिंग कंटूर के हिल पर चढ़ते हुए अपने बंकर पर पहुंचे थे। सीजफायर की घोषणा होने के बाद से ही मेरी पोस्टिंग सियाचिन ग्लेशियर में की गई थी। 28 मई की रात हम रेडियो पर क्रिकेट मैच सुन रहे थे तभी फायरिंग होने लगी थी। हम रात में ही लद्दाख के तुरतुक गांव के लिए रवाना हो गए थे। हमें ऊपर चोटी पर बने खाली बंकर में पहुंचने का आदेश मिला था।”

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वह आगे बताते हैं, “हमने इस दौरान पहाड़ियों पर डेढ़ महीने का सफर तय किया। पीठ पर 25-27 किलो का भार लेकर चलते रहे। 50 मीटर खड़ी चट्टान पर चढ़ने के दौरान ऊपर से फायरिंग हो रही थी लेकिन हमने बेस बनाकर दुश्मनों का सामना किया। कारगिल युद्ध (Kargil War) में अंत में हमारी ही जीत हुई।”