Hindi News (हिंदी समाचार), News in Hindi, Latest News In Hindi

अपनों की शहादत ने दी हिम्मत, वतन की हिफाजत के लिए मोर्चा संभाल रही हैं बेटियां

naxal attack martyrs family

नक्सली हमले में शहीदों के परिवारों में ऐसी हिम्मत वाली बेटियां और महिलाएं हैं जो शहादत के बाद उनकी जगह पोस्टेड हैं और देश व समाज की सेवा कर रही हैं। पहले सिर्फ घर की जिम्मेदारी उठाती थीं, लेकिन हालात ऐसे हुए कि उन्हें घर के अलावा आर्थिक जिम्मेदारी भी संभालनी पड़ी। घर परिवार की जिम्मेदारी उठाने के साथ अपने प्रियजनों की ड्यूटी को पूरा करने के लिए आज वे भी मोर्चे पर डटी हुई हैं।

झलमला की पूर्णिमा ठाकुर अपने भाई की जगह ले कर पुलिस की ड्यूटी कर रही हैं। उनके भाई निर्लेश ठाकुर नेतानार में नक्सली मुठभेड़ में शहीद हुए थे। पूर्णिमा के भाई की शादी भी नहीं हुई थी। नौकरी मिले कुछ महीने ही हुए थे। उस समय वे 12वीं में पढ़ रही थीं। भाई के जाने के बाद परिवार को भी सहारे की जरूरत थी। इसलिए उन्होंने भाई की जगह लेने का फैसला किया। परिवार में पिता विष्णु राम ठाकुर रिटायर्ड शिक्षक, मां कुमारी के अलावा बड़े भाई चंद्रहास ठाकुर हैं। पूर्णिमा अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती थीं। उन्होंने पढ़ाई के बाद भाई की जगह ले ली। वे पहले पढ़ाई करके टीचर बनना चाहती थीं। पर भाई की शहादत ने उन्हें देश प्रेम के लिए प्रेरित किया।

खरथुली (कोबा) गांव के चंद्रकांता के पति यीशु कुमार पिस्दा 11 मार्च, 2014 को सुकमा जिले के तोंगपाल क्षेत्र में नक्सली हमले के दौरान शहीद हो गए थे। अभी उनकी शादी को 10 महीने ही हुए थे। ठीक से वैवाहिक जीवन की खुशियां भी नहीं बांट पाई थीं और उनके माथे का सिंदूर मिट गया। चंद्रकांता ने एमए तक पढ़ाई की है। वह टीचर बनना चाहती थीं। कभी सोचा नहीं था कि पुलिस जॉइन करेंगी। पर नक्सलियों के कारण उनके पति की जान गई। इस सोच ने उन्हें पति की शहादत के बाद पुलिस बनने के लिए प्रेरित किया। 2014 से वे एसपी ऑफिस में एएसआई के पद पर तैनात हैं।

परसदा गांव की टेकेश्वरी ठाकुर के पति चैतराम ठाकुर 21 अक्टूबर 2011 को पुलिस थाना दरभा क्षेत्र में सर्चिंग के दौरान नक्सलियों से मुठभेड़ में लड़ते हुए शहीद हो गए थे। उस समय टेकेश्वरी का डेढ़ महीने का बच्चा था। अपने पति की जगह अनुकंपा नियुक्ति लेकर 2012 से टेकेश्वरी बालोद एसपी कार्यालय में तैनात हैं। उनका बेटा तोरण 8 साल का हो गया है। वह दूसरी कक्षा में है। जब तोरण 3 साल का था तो वह अपने पापा के बारे में पूछता था। घरवालों ने कहा कि वह शहीद हो गए हैं। नक्सलियों ने उन्हें मार दिया। यह सुन तोरण कहता कि नक्सलियों ने मेरे पापा को मारा था। मैं भी एक दिन नक्सलियों को मारूंगा। मैं भी पुलिस वाला बनूंगा।