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Kargil War 1999: लेफ्टिनेंट कर्नल रामकृष्णन विश्वनाथन ने निभाई थी अहम भूमिका, ‘वीर चक्र’ से हुए सम्मानित

लेफ्टिनेंट कर्नल रामकृष्णन विश्वनाथन

Kargil War 1999: लेफ्टिनेंट कर्नल रामकृष्णन विश्वनाथन (Lieutenant Colonel Ramakrishnan Vishwanathan) को मरणोपरांत ‘वीर चक्र’ से सम्मानित किया गया था।

भारत और पाकिस्तान के बीच 1999 में कारगिल युद्ध (Kargil War) लड़ा गया था। इस युद्ध में पाकिस्तानी सेना को हमारे वीर सपूतों ने बुरी तरह से हराया था। पाकिस्तानी सेना को हराने के लिए हमारे जवान किसी भी हद तक गुजरने के लिए तैयार रहते हैं। चाहे कड़कती ठंड हो या चुभती धूप, ये जाबांज सैनिक देश की सुरक्षा के लिए हमेशा सीमा पर तैनात रहते हैं।

इस युद्ध में भी ऐसा ही देखने को मिला था, जब हमारे वीर सपूतों ने विपरीत परिस्थितियों के बावजूद दुश्मनों पर कहर बरपाया था। हमारे सैनिकों ने पाकिस्तानी सैनिकों को कारगिल रणक्षेत्र से भगाया था। कई सैनिकों को ढेर किया था तो कई सैनिकों को घायल। इस टास्क में हमारे सभी जवानों ने अहम भूमिका निभाई थी, वहीं कुछ जवान ऐसे थे जिनके पराक्रम की मिसाल आज भी पेश की जाती है।

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ऐसे ही एक जवान लेफ्टिनेंट कर्नल रामकृष्णन विश्वनाथन (Lieutenant Colonel Ramakrishnan Vishwanathan) भी हैं। वे वीआरसी ’18 ग्रेनेडियर्स’ के सेकेंड-इन-कमांड थे। उन्होंने ‘ऑपरेशन विजय’ में बेहतरीन प्रदर्शन किया था। इस ऑपरेशन के दौरान तोलोलिंग हिल, द्रास सेक्टर, कारगिल और उसके आसपास के इलाकों से दुश्मनों को खेदड़ा गया था। लेफ्टिनेंट कर्नल रामकृष्णन विश्वनाथन इस दौरान दुश्मनों पर कहर बनकर बरपे थे। दुश्मनों को कोई मौका न देकर उन्होंने जबरदस्त प्रहार किया था।

15,000 फुट की ऊंचाई पर बहुत ही कठिन हालातों में साहस का परिचय दिया था। जवाबी कार्रवाई में उन्हें भी कुछ गोलियां लगी थीं, लेकिन उन्होंने पीछे हटने से इनकार कर अन्य जवानों को प्रेरित किया था। लेफ्टिनेंट कर्नल रामकृष्णन विश्वनाथन ने घायल अवस्था में ही अपनी टीम के साथ दुश्मनों के तीन ठिकानों को नष्ट कर दिया था। उन्होंने अकेले ही चार दुश्मनों को ढेर कर दिया था। इसके चलते सेना प्वाइंट 4590 पर कब्जा करने में कामयाब हुई थी।

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बता दें कि लेफ्टिनेंट कर्नल रामकृष्णन विश्वनाथन (Lieutenant Colonel Ramakrishnan Vishwanathan) को मरणोपरांत ‘वीर चक्र’ से सम्मानित किया गया था। उन्होंने अपनी स्कूली पढ़ाई कोच्चि में की। उन्होंने श्रीलंका में भारतीय शांति सेना और बाद में संयुक्त राष्ट्र शांति सेना के साथ अंगोला में सेवा भी की थी।