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सूबेदार भंवरलाल भाकर: खून से लथपथ था शरीर फिर भी झुका नहीं सिर, फहराई विजय पताका

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Kargil War 1999: वह अपने साथी जवानों के साथ पाकिस्तानी घुसपैठियों द्वारा कब्जे वाली तोलोलिंग पहाड़ी की सीधी चट्टान पर रेंगते-रेंगते उस जगह पहुंचे थे जहां दुश्मन ने कई बंकर बना रखे थे।

भारतीय सेना के जवान किसी भी चुनौती और दर्द का सामना करना देश की रक्षा के लिए तत्पर रहते हैं। ऐसे कई मौके आए हैं जब जवानों ने खुद को साबित किया है और देश की रक्षा के लिए प्राण त्याग दिए। भारत और पाकिस्तान के बीच 1999 में लड़े गए कारगिल युद्ध (Kargil War) के दौरान सूबेदार भंवरलाल भाकर ने अदम्य साहस का परिचय दिया था।

जंग के मैदान में एक वक्त ऐसा भी आया जब उनका शरीर खून से लथपथ था, लेकिन वह दुश्मनों के खिलाफ झुके नहीं बल्कि उनका डटकर सामना किया और कारगिल की पहाड़ी पत विजय पताका फहराई।

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दरअसल, वह अपने साथी जवानों के साथ पाकिस्तानी घुसपैठियों द्वारा कब्जे वाली तोलोलिंग पहाड़ी की सीधी चट्टान पर रेंगते-रेंगते उस जगह पहुंचे थे जहां दुश्मन ने कई बंकर बना रखे थे। 12 जून, 1999 की रात को उन्होंने साथी जवानों के साथ मौका देख दुश्मनों पर हमला बोल दिया था। इस दौरान भंवरलाल के हाथ में गोली लगने पर वह घायल हो गए।

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हालांकि, उन्होंने मौके पर हौसला नहीं खोया बल्कि जवानों का हौसला कम नहीं होने दिया और खून से लथपथ हाथ पर कपड़ा बांधकर दुश्मन पर टूट पड़े और तोलोलिंग पहाड़ी को घुसपैठियों से मुक्त करा लिया। तभी एक घुसपैठिए की मशीन गन का निशाना भंवरलाल को लगा और वह जंग के मैदान में ही शहीद हो गए। हालांकि, इस दौरान कई घुसपैठियों को सेना द्वारा ढेर कर दिया गया।