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कारगिल शहीद वीरेंद्र सिंह: आंखों में आज भी कैद है पापा की छवि, ऐसे जी रहे जीवन

फाइल फोटो।

Kargil War 1999: वीरेंद्र सिंह पत्नी गायत्री देवी और डेढ़ वर्षीय पुत्री ज्योति और तीन वर्षीय पुत्र चंद्रभान सिंह को छोड़कर इस दुनिया को अलविदा कह गए थे।

भारत और पाकिस्तान के बीच 1999 में लड़े गए कारगिल युद्ध में 11 राइफल यूनिट के वीरेंद्र सिंह ने भी शहादत दी थी। दुश्मनों से लोहा लेते हुए वे भारत मां की रक्षा करते हुए शहीद हुए थे। उनके बच्चे आज भी अपने पिता की हीरो वाली छवि को आंखों में संजोए हुए हैं।

राजस्थान के भरतपुर  स्थित गांव अजान के रहने वाले वीरेंद्र सिंह पत्नी गायत्री देवी और डेढ़ वर्षीय पुत्री ज्योति और तीन वर्षीय पुत्र चंद्रभान सिंह को छोड़कर इस दुनिया को अलविदा कह गए थे। पिता एक हीरो हैं और हमेशा रहेंगे, यही सोचकर दोनों बच्चों ने अपना बचपन बिताया।

अब दोनों सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहे हैं। बड़ा बेटा बीएससी पूरी कर स्टेट सिविल सर्विस एग्जाम की तैयारी कर रहा है, जबकि ज्योति भी बीएससी पूरा कर चुकी हैं और एमएससी की पढ़ाई कर रही है। वह टीचर बनना चाहती हैं।

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बता दें कि युद्ध लगभग 60 दिनों तक चला और 26 जुलाई को उसका अंत हुआ था। 1999 के इस 60 दिनों के घटनाक्रम के बारे में सेना और सरकार द्वारा जो जानकारियां सामने आई हैं उसके मुताबिक युद्ध की नींव 1999 के फरवरी महीने में ही रख दी गई थी।

कारगिल युद्ध में तीस हजार भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तानी सेना से लोहा लिया था। युद्ध में हमारे 527 सैनिक और अधिकारी शहीद हुए थे। इस दौरान 1300 जवान घायल हुए थे। युद्ध में शहीद वीरेंद्र सिंह की तरह ही अन्य शहीदों के बच्चे भी आज पढ़ लिखकर देश का वर्तमान और भविष्य उज्ज्वल कर रहे हैं।