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ले. कमांडर चौहान की एक महीने पहले ही हुई थी शादी, INS विक्रमादित्‍य पर हुई दुर्घटना में शहीद

कर्नाटक के कारवाड़ में विमानवाहक जंगी पोत आईएनएस विक्रमादित्‍य में आग लग गई। आग उस वक्त लगी जब आईएनएस विक्रमादित्‍य बंदरगाह में प्रवेश कर रहा था। इस आग को बुझाने में लेफ्टिनेंट कमांडर धर्मेंद्र सिंह चौहान शहीद हो गए। लेफ्टिनेंट कमांडर चौहान केवल 30 वर्ष के थे। उनकी साहस और सूझ-बूझ की वजह से एयरक्राफ्ट कैरियर पर सवार 1500 नौसैनिकों की जान बच गई। आईएनएस विक्रमादित्‍य देश का सबसे बड़ा विमानवाहक जंगी पोत है। नेवी ने घटना की ‘बोर्ड ऑफ इन्क्वॉयरी’ के आदेश दे दिए हैं।

26 अप्रैल को आईएनएस विक्रमादित्य बंदरगाह पहुंचने ही वाला था कि उसमें आग लग गई। लेफ्टिनेंट कमांडर चौहान के नेतृत्व में क्रू ने आग को बुझा लिया। पर आग बुझाने के दौरान कमांडर चौहान के फेफड़ों में धुंआ और गैस भर जाने से वह बेहोश होकर गिर गए। उन्हें वहां से निकालकर तुरंत कारवाड़ स्थित नेवी हॉस्पिटल ले जाया गया। पर, उन्हें बचाया नहीं जा सका। उनके साहस से 44,500 टन वजन वाले पोत की लड़ाकू क्षमता को कोई नुकसान नहीं पहुंचा। साथ ही, उस पर सवार 1500 नौसैनिकों की जान भी बच गई।

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इंडियन नेवी ने बहादुर लेफ्टिनेंट कमांडर चौहान के जज्‍बे को सलाम किया है और कहा है कि नौसेना हर पल उनके परिवार के साथ रहेगी। नेवी ने ट्वीट कर लिखा है, ‘हम उनके साहस और ड्यूटी दौरान उनके विवेक का अभिनंदन करते हैं। हम हर पल उनके परिवार के साथ हैं और हर मुश्किल घड़ी में उनके साथ रहने का वादा करते हैं।’ नौसेना प्रमुख एडमिरल सुनील लांबा ने कहा कि लेफ्टिनेंट कमांडर चौहान की बहादुरी से आग को बुझा लिया गया। हम उनके साहस और कर्तव्यनिष्ठा को सलाम करते हैं।

शहीद लेफ्टिनेंट कमांडर धर्मेन्द्र सिंह चौहान

लेफ्टिनेंट कमांडर चौहान मध्‍य प्रदेश के रतलाम के रहने वाले थे। परिवार में मां और बहन के अलावा उनकी पत्‍नी हैं। उनकी शादी को अभी एक माह ही हुए थे। 10 मार्च को आगरा की रहने वाली करुणा सिंह से उनकी शादी हुई थी। शहीद हुए लेफ्टीनेंट कमांडर धर्मेंद्र सिंह चौहान की मां टमा कुंवर फिलहाल रिद्धी-सिद्धी कॉलोनी स्थित घर में अकेली हैं। 12 मार्च को रतलाम में रिसेप्शन के बाद 23 मार्च को लेफ्टिनेंट कमांडर चौहान ड्यूटी पर गए थे। जाते समय मां से वादा करके गए थे कि दीपावली पर वापस आकर घुमाने ले जाएंगे।

शहीद बेटे को याद कर मां बार-बार बेसुध हो जाती हैं। होश में आती हैं तो कहती हैं, अब मुझे घुमाने कौन ले जाएगा। कभी शहीद बेटे धर्मेंद्र की यूनिफॉर्म की टोपी को चूमती हैं, तो कभी उसकी तस्वीर के सामने जाकर सैल्यूट करने लगती हैं। इकलौते बेटे को खोने का गम तो है पर साथ में गर्व भी है। जब भी कोई घर में आता है तो कहती हैं नजरें झुकाकर मत आओ, नमस्ते की बजाए पहले सैल्यूट करो, मेरा बेटा भारत माता के लिए शहीद हुआ है। सांत्वना देने आए रिश्तेदार और पड़ोसी भी आंसू नहीं रोक पा रहे हैं।

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शहीद की मां ने बताया कि वो एयरफोर्स में जाना चाहते थे। लेकिन 2012 में नेवी में सेलेक्शन हो गया। नौकरी ज्वॉइन करते ही उन्होंने बैंक से लोन लेकर रिद्धी-सिद्धी कालोनी में खुद का मकान बनवाया। 26 अप्रैल, दोपहर लगभग 1.30 बजे मां टमा कुंवर को बेटे के शहीद होने की जानकारी मिली। इससे पहले आगरा से बहू करूणा ने फोन कर बताया था कि उनका एक्सीडेंट हो गया है, वो आईसीयू में हैं। अभी घरवाले हॉस्पिटल रवाना होने को ही थे कि कुछ ही मिनटों बाद मां को एक नेवी ऑफिसर का फोन आया। उन्होंने धर्मेंद्र के शहीद होने की सूचना दी। इसके बाद से ही मां बेसुध है।

उनकी पत्नी करूणा सिंह को पता भी नहीं चला कि उसके पति शहीद हो चुके हैं। वो अपने भाई के साथ प्लेन से कारवाड़ के लिए रवाना हो चुकी थीं। पुलवामा हमले और उसके बाद एयर स्ट्राइक के कारण सीमा पर तनाव की वजह से शहीद लेफ्टिनेंट कमांडर धर्मेंद्र को शादी के लिए भी कम छुटि्टयां हीं मिल पाई थीं। मां ने बताया धमेंद्र गोवा से सीधे आगरा शादी में पहुंचे थे। वहीं सारी रस्में हुई। रतलाम में रिस्पेशन के तुरंत बाद वह वापस ड्यूटी पर चले गए थे।

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