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पत्थरबाजों पर भारी पड़ती CRPF की यह शेरनी, लोग इन्हें कहते हैं ‘लेडी सिंघम’

Kanchan Yadav

श्रीनगर के पत्थर मस्जिद क्षेत्र में मुजाहिद मंज़िल में अपने शिविर में बैठी महिला पुलिस अधिकारी पहली नजर में एक साधारण लड़की की तरह दिखती है। लेकिन उनके सौम्य चेहरे के पीछे एक सख्त लेडी-ऑफिसर छुपी है, जिन्होंने पुरुषों को वर्चस्व वाले सुरक्षा अभियानों में अपनी छाप छोड़ी है। सुरक्षाबलों पर पत्थरबाजी करती भीड़, कब किस रास्ते पर पत्थरबाजों का झुंड मिल जाए कुछ पता नहीं, भटके हुए अपनों को बचाने की भी जिम्मेदारी… ये सारी चुनौतियां धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले कश्मीर में आए दिन आती रहती हैं। लेकिन हालात तब और भी गंभीर हो गए थे जब हिजबुल के आतंकी बुरहान बानी का एनकाउंटर हुआ था। उस बिगड़ते माहौल से निपटने के लिए जब एक महिला अफसर ने मोर्चा सम्भाला तो उपद्रवियों के पैर उखड़ गए। यह अधिकारी केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) की 44वीं बटालियन में तैनात 30 साल की असिस्टेंट कमांडेंट कंचन यादव हैं। कंचन अर्धसैनिक बल की एकमात्र महिला अधिकारी हैं जो बेहद संवेदनशील अलगाववादियों के गढ़ में कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए तैनात हैं। कंचन को वहां के पत्थरबाजों से निपटने में महारथ हासिल है।

कंचन यादव

कंचन कहती हैं, “मुझे वह दिन याद है जब मेरी कंपनी जमालट्टा से वापस आ रही थी तभी पथराव करने वालों की भीड़ अचानक सामने आ गई और मुझ पर चिल्लाने लगी। मुझे भड़काने के लिए वे गालियां देने लगे। लेकिन मैं शांत रही और आगे बढ़ी। मेरे लिए सैनिकों की सुरक्षा सर्वोपरि थी।”

इस अधिकारी ने हिजबुल मुजाहिदीन कमांडर बुरहान वानी की हत्या के बाद श्रीनगर की सड़कों पर हुए आतंक देखे हैं। बानी के एनकाउंटर के बाद धरती का स्वर्ग, नर्क में तब्दील हो गया था। सुरक्षाबलों पर आम जनता पत्थरबाजी कर रही थी। कई जवान घायल हुए तो कई की मौत भी हो गई। सुरक्षाबलों के सामने बहुत ही कठिन चुनौतियां थीं। उन्हें यह समझ नहीं आ रहा था कि वह किसके खिलाफ एक्शन लें, आतंकियों के या फिर अपनों के? ऐसे में कानून-व्यवस्था बनाए रखने और पत्थरबाजों से निपटने के लिए कंचन यादव ने अदम्य साहस का परिचय दिया। वह सुबह से रात तक घाटी की सड़कों पर पत्थरबाजों का सामना करने के लिए डटी रहती थीं। सीआरपीएफ कैंपों की रखवाली करने से लेकर उपद्रिवयों पर नजर रखने तक, उन्होंने यह सब किया है।

कंचन को उनकी बटालियन में ‘लेडी सिंघम’ के नाम से बुलाया जाता है। उनके दृढ़ निश्चय और अदम्य साहस ने ही घाटी में उन्हें यह नाम दिया। बचपन से ही वह वर्दी से आकर्षित थीं। दरअसल, हरियाणा की रहने वाली कंचन में देशप्रेम का जज्बा अपने परिवार से ही आया है। उनकी मां भी सीआरपीएफ में असिस्टेंट कमांडेंट हैं। कंचन के नाना पैरामिलिट्री फोर्स से रिटायर हुए थे। जबकि पिता वायुसेना से रिटायर हुए हैं। उनकी मां 1999 में करगिल युद्ध के समय कश्मीर में ही तैनात थीं। उस समय 11 साल की कंचन पहली बार कश्मीर गई थीं। वह अपने परिवार की तीसरी ऐसी पीढ़ी हैं जो देश की सुरक्षा में लगा हुआ है। यादव 2010 बैच की अधिकारी हैं। कंचन के पति नौसेना में अफसर हैं। दोनों की शादी दिसंबर 2015 में हुई थी।

इस लेडी आईपीएस के नाम से ही कांप जाती है दहशतगर्दों की रूह

शादी के बाद उन्हें अपने पति के साथ पोस्टिंग लेने का ऑप्शन मिला था। पर उन्होंने अपना कार्यकाल पूरा करने के लिए कश्मीर में ही रहने का विकल्प चुना। उनकी पहली पोस्ट-ट्रेनिंग पोस्टिंग कश्मीर में थी। फरवरी 2014 में उनकी तैनाती नारबल में हुई और जून 2015 में उन्हें श्रीनगर में पोस्टिंग मिली। यादव कहती हैं “मैं अपने शिविर के आस-पास के घरों का दौरा करती थी। बहुत सारे विरोध प्रदर्शन हुए, लोग हमारे शिविर के पास मस्जिदों से नारे लगाते थे, शिविर के बाहर इकट्ठा होते थे, लेकिन उन्होंने कभी शिविर पर हमला नहीं किया।” कंचन कहती हैं, मेरे लिए देश सर्वोपरि है और मुझे अपना काम बहुत पसंद है। जब आप वर्दी पहनते हैं तो आपके ऊपर बहुत बड़ी जिम्मेदारी होती है। वह कहती हैं कि हम महिलाएं किसी से कम नहीं हैं। बस आप अपने दिल की सुनिए और आप कुछ भी कर सकती हैं। जब हम फोर्स में ट्रेनिंग लेकर काम करने के लिए फील्ड में आते हैं तो बस एक बात मन में रहती है कि हम फोर्स का हिस्सा हैं। उनके मुताबिक, ऐसे में महिला और पुरुष होने जैसा कोई एहसास नहीं रह जाता। सिर्फ देश की सेवा और सुरक्षा की भावना रह जाती है। उन्होंने कहा कि, मैंने और मेरे पति ने अपना जीवन देश के लिए समर्पित कर दिया है। परिवार इसके बीच नहीं आता।

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p style=”text-align: justify;”>सचमुच, इस कदर खतरनाक माहौल में जब कभी भी उपद्रवियों की भीड़ आपके ऊपर हमला कर सकती है, इतने साहस और धैर्य के साथ डटे रहना कोई रियल-लाइफ लेडी-सिंघम ही कर सकती है।