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Kargil War: युद्ध की कहानी ब्रिगेडियर खुशाल ठाकुर की जुबानी, जानें कैसा था इनका अनुभव

ब्रिगेडियर खुशाल ठाकुर (Brigadier Khushal Thakur) बताते हैं, “ठंड की वजह से शरीर अकड़ रहा था और हमारे पास वहां छिपने के लिए सिर्फ बड़े-बड़े पत्थर ही थे। जैसे ही चढ़ाई पूरी हुई और दुश्मनों के पास पहुंचा गया तो जबरदस्त प्रहार किया गया।”

भारत और पाकिस्तान के बीच 1999 में कारगिल का युद्ध (Kargil War) लड़ा गया था। पाकिस्तान के खिलाफ भारतीय सैनिकों का पराक्रम इतना भयंकर था जिसे याद कर दुश्मन देश आज भी थर्र-थर्र कांप उठता होगा। पाकिस्तानी सेना को हराकर ही भारतीय सैनिकों ने दम लिया था।

इस युद्ध (Kargil War) में शामिल रहे हिमाचल प्रदेश के कुल्‍लू के रहने वाले ब्रिगेडियर खुशाल ठाकुर (Brigadier Khushal Thakur) ने अपने अनुभव साझा किए हैं। कारगिल युद्ध के हीरो एवं युद्ध सेवा मेडल से  नवाजे गए ब्रिगेडियर खुशाल ठाकुर के मुताबिक, 15 मई, 1999 को हमें सूचना मिली कि द्रास सेक्टर कारगिल, बटालिक सेक्टर में कुछ मुजाहीद्दीन घुसे हैं। इसके बाद दुश्मनों को खदेड़ने की तैयारी शुरू हो गई थी।

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वे आगे बताते हैं, “हालांकि हमें इस बात की कोई सूचना नहीं मिली थी कि कितने दुश्मन हैं और किस क्षेत्र में घुसे हैं। 20 मई के दिन हमने तोलोलिंग की चोटी पर चढ़ाई शुरू कर दी थी। इस दौरान पता चला कि एक-दो नहीं बल्कि घुसपैठ को अंजाम देने वाले कई पाकिस्तान सैनिक हैं।”

ब्रिगेडियर खुशाल ठाकुर (Brigadier Khushal Thakur) कहते हैं, “चुनौतियां कई सारी थीं लेकिन जज्बा उससे ज्यादा। पथरीली सीधी चढ़ाई, 18 हजार फीट ऊंचाई और माइनस डिग्री तापमान में हालात खराब हो रही थी। ठंड सहन करने लायक नहीं थी।”

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ब्रिगेडियर खुशाल ठाकुर (Brigadier Khushal Thakur) के मुताबिक, “उस दौरान ठंड की वजह से शरीर अकड़ रहा था और हमारे पास वहां छिपने के लिए सिर्फ बड़े-बड़े पत्थर ही थे। जैसे ही चढ़ाई पूरी की गई और दुश्मनों के पास पहुंचा गया तो जबरदस्त प्रहार किया गया। इस तरह 12 और 13 जून को ही हमने तोलोलिंग चोटी को फतह कर लिया था।”