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बदलाव: इस नक्सली के खिलाफ दर्ज थे 25 से ज्यादा मामले, अब ऑटो चलाकर पालता है परिवार

बहादुर के खिलाफ बोकारो जिले के नावाडीह और बोकारो थर्मल थाना में लगभग 25 से अधिक मामले दर्ज हैं। ये मामले नक्सली (Naxalite) वारदातों और अवैध कोयला कारोबार से संबंधित हैं।

गरीबी और बेरोजगारी भुखमरी को जन्म देती है। ऐसे में कई बार इंसान अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए गलत रास्ता भी अपना लेता है। ऐसी ही कहानी है बहादुर तुरी की, जो अपनी परेशानियों की वजह से नक्सली (Naxalite) बन गया और फिर अचानक उनकी जिंदगी ने एक नई करवट ले ली।

1995 में बोकारो जिले में एक कुख्यात नक्सली (Naxalite) का नाम सामने आया था, वह नाम था बहादुर तुरी। वह मूल रूप से बोकारो जिले के घोर नक्सल प्रभावित कंजकीरो गांव का निवासी था। उस दौरान बहादुर के परिवार की हालत बहुत दयनीय थी।

नक्सलियों ने बहादुर को उसकी हालत सुधारने का लालच दिया और नक्सली संगठन में शामिल कर लिया। बहादुर भाकपा माओवादी संगठन की किसान इकाई संगठन क्रांतिकारी किसान कमेटी (केकेसी) से जुड़ गया।

कुछ ही समय में संगठन में उसका दबदबा बढ़ गया और उसकी पहुंच बढ़ गई। वह कई वारदातों में शामिल हुआ, लेकिन इन वारदातों की संख्या के बारे में पुख्ता जानकारी नहीं है।

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पुलिस के डर से बहादुर, रात के अंधेरे में अपने बूढ़े मां-बाप और परिवार से मिलने आता था। इसके बाद वह जंगलों में छिप जाता था।

बहादुर के खिलाफ बोकारो जिले के नावाडीह और बोकारो थर्मल थाना में लगभग 25 से अधिक मामले दर्ज हैं। ये मामले नक्सली वारदातों और अवैध कोयला कारोबार से संबंधित हैं।

बहादुर की गिरफ्तारी बोकारो की तत्कालीन एसपी तदाशा मिश्रा के निर्देश पर नावाडीह पुलिस और बोकारो थर्मल पुलिस के संयुक्त प्रयास से 2003 में उसके पैतृक गांव कंजकीरो से ही की गई थी।

गिरफ्तारी के बाद उसकी निशानदेही पर बोकारो पुलिस को इस क्षेत्र के कई अहम सुराग मिले और कई नक्सलियों के प्रयोग हेतु जंगल मे छिपाई गई रायफल और पिस्टल सहित कई अन्य समान बरामद किए थे।

जेल से छूटने के बाद बहादुर को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने नक्सलवाद (Naxalism) का रास्ता छोड़कर समाज की मुख्यधारा को अपनाया।

अब बहादुर अपने जीवन को चलाने के लिए ऑटो चलाता है। इस समय उसकी उम्र 55 साल है। वह अब रोज सुबह से शाम तक ऑटो लेकर बोकारो थर्मल से कंजकीरो तक सवारियों को उनके गंतव्य स्थल तक पहुंचाता है।

बहादुर ने अपने पुराने जीवन के बारे में बताया, ‘उस समय पैसे की तंगी ने ही मुझे इस ओर आने को मजबूर किया था, जब सब कुछ समझ पाते तब बहुत देर हो चुकी थी। जेल के अंदर यह महसूस हुआ कि हमने बहुत गलत रास्ते का चुनाव किया।’

बहादुर ने कहा, ‘नक्सल पथ इंसान के लिए ठीक नहीं है, जिन्हें इस बात का अनुभव हुआ, उन लोगों ने संगठन को छोड़ दिया और आत्म समर्पण कर दिया।’

इस तरह बहादुर अब नक्सली नहीं बल्कि आम इंसान की तरह जिंदगी जी रहा है और अपने परिवार के साथ खुश है।

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