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दंतेवाड़ा पुलिस की अभिनव पहल, अब जन-जन को दिखाया जाएगा नक्सलवाद का असली चेहरा

दंतेवाड़ा पुलिस बना रही नक्सली घटनाओं पर आधारित शॉर्ट फिल्म

एक सरेंडर कर चुकी महिला नक्सली एसपी के पास बच्चे को लेकर पहुंचती है। कहती है- “सर, मेरा बच्चा अब 3 साल का हो गया है, इसे स्कूल भेजना चाहती हूं। एसपी कहते हैं- “तुम्हारा सूरज, हमारे लिए ‘नई सुबह का सूरज’ जैसा है। इसके लिए मैंने पास के स्कूल में बात कर ली है कोई समस्या नहीं है।” यह हकीकत में हुई कोई घटना नहीं है फिल्म का एक दृश्य है। लोगों को नक्सलियों की हकीकत और नक्सलवाद का असली चेहरा दिखाने के लिए दंतेवाड़ा पुलिस सच्ची कहानियों पर आधारित एक शॉर्ट फिल्म बना रही है। यह फिल्म बनाई जा रही है ताकि लोगों को यह बताया और समझाया जा सके कि नक्सलवाद से कितना नुकसान हुआ है।

इस फिल्म की स्क्रिप्ट और गीत दंतेवाड़ा में तैनात एएसपी सूरज सिंह परिहार ने लिखा हैं। फिल्म का नाम है ‘नई सुबह का सूरज’। इसमें कलाकार पुलिस के जवान और सरेंडर कर चुके नक्सली हैं। फिल्म में नक्सलवाद की सच्ची घटनाओं को दिखाया गया है। लगभग 10 मिनट की इस शॉर्ट-फिल्म की शूटिंग के लिए भिलाई और रायपुर से जवानों की एक टीम दंतेवाड़ा पहुंची है। दंतेवाड़ा जिला पुलिस बल और डीआरजी के जवानों के अलावा फिल्म में सरेंडर कर चुके नक्सली भी अभिनय कर रहे हैं। फिल्म में एसपी का रोल भी खुद एसपी डॉ. अभिषेक पल्लव ही निभा रहे हैं। शूटिंग की शुरुआत कारली के घने जंगलों से हो रही है।

इसके अलावा दंतेवाड़ा की अलग-अलग लोकेशंस पर भी शूटिंग होगी। फिल्म में नक्सलियों के सबसे बड़े नेता गणपति, हिड़मा और हुंगी का मुख्य किरदार है। गणपति के रोल के लिए भिलाई के कलाकारों को बुलाया गया है। चूंकि बड़े नक्सली नेता दंतेवाड़ा से बाहर के हैं, ऐसे में इस किरदार के लिए बाहर के कलाकारों का चुनाव किया गया है। एसपी डॉ. पल्लव ने बताया कि नक्सली भोले-भाले गांव वालों और बच्चों का ब्रेनवाश करते आए हैं। अब तक नक्सलवाद के बारे में जो भी लिखा गया है वो बाहरी लोगों ने लिखा है। इस विषय पर जो भी फिल्में बनीं हैं, वो बाहरी लोगों ने ही बनाया है। लिहाजा उन फिल्मों का हकीकत से ज्यादा ताल्लुक नहीं होता है। अब बस्तर को करीब से जानने वाले, यहां पर रहने वाले लोग यह फिल्म बना रहे हैं, जो सच्चाई को सही ढंग से सामने लाएगी।

नक्सल संगठन के भीतर के हालात और हकीकत बताने वाली बातों को भी फिल्म में शामिल किया गया है। फिल्म बनने के बाद इसे पेन ड्राइव के जरिए स्कूलों, आश्रमों,  गांव की पंचायतों और लोगों को देखने के लिए दिया जाएगा। जिससे नक्सलियों का असली चेहरा लोगों के सामने आए, साथ ही जो लोग रास्ता भटक गए हैं, उन्हें फिर से मुख्यधारा से जुड़ने के लिए प्रोत्साहन मिले। एएसपी सूरज ने बताया यहां आने के बाद नक्सलवाद के दर्द को समझ कर यह कहानी लिखी है।

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