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Pulwama: पुलवामा जिले का यह गांव लिख रहा विकास की नई इबारत, पहले माना जाता था आतंक का गढ़

पुलवामा (Pulwama) अब देश का ‘पेंसिल डिस्ट्रिक्ट’ (Pencil District of India) बन रहा है। जिले का यह गांव रोजगार देने में और व्यापार (Trade with Kashmir) के क्षेत्र में भी आगे आ रहा है। 

जम्मू-कश्मीर (Jammu-Kashmir) के पुलवामा (Pulwama) जिले को हम सब आतंक के गढ़ के रूप में जानते हैं। लेकिन पुलवामा अब देश का ‘पेंसिल डिस्ट्रिक्ट’ (Pencil District of India) बन रहा है। इस जिले का एक गांव देश भर में इसकी अलग पहचान की इबारत लिख रहा है। यह गांव रोजगार देने में और व्यापार (Trade with Kashmir) के क्षेत्र में भी आगे आ रहा है। 

दक्षिण कश्मीर में बसा पुलवाना (Pulwama) जिले का गांव ऊखू (Unkhu) आज के समय में देश भर में होने वाले पेंसिल उत्पादन के लिए 90 फीसदी लकड़ी मुहैया करवा रहा है। पेंसिल और स्लेट के उत्पादन का गढ़ बन चुका है यह गांव। यहां एक फैक्ट्री के मालिक मंजूर अहमद के मुताबिक, जो कंपनियां पहले जर्मनी और चीन से लकड़ी आयात करती थीं, अब ऊखू से कर रही हैं।

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इससे यहां रोजगार के मौके बढ़ रहे हैं। सरकारी स्तर पर प्रयास हो रहे हैं कि पुलवामा को यह नई पहचान दिलाई जा सके। कश्मीर के पुलवामा जिले में वह लकड़ी मिलती है जिससे अच्छी क्वालिटी की पेंसिल बनाई जाती है। यहां बड़ी संख्या में वह पेड़ पाए जाते हैं, जिनसे यह खास किस्म की लकड़ी मिलती है।

पुलवामा (Pulwama) के नम इलाकों में पाया जाने वाला यह पेड़ चिनार का ही एक किस्म है। यहां दर्जनों छोटी-छोटी इकाइयां इस लकड़ी को पेंसिल इंडस्ट्री को मुहैया कराने के कारोबार में लगी हुई हैं। जानकारी के मुताबिक, यहां 60% पेंसिल उत्पादन होता है। यहां करीब 250 इकाइयां सेव के बागान से घिरे इस इलाके में पेंसिल उत्पादन उद्योग में काम कर रही हैं।

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इन इकाइयों से जो रॉ मेटेरियल सप्लाई किया जा रहा है, वह देश की बड़ी पेंसिल निर्माता कंपनियों के पास पहुंच रहा है। एचटी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, नटराज और अप्सरा पेंसिल जैसे ब्रांड बनाने वाली हिंदुस्तान पेंसिल्स को यहीं से कच्चा माल मिलता है। यह कंपनी दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी पेंसिल निर्माता है।

सबसे खास बात यह है कि कश्मीर (Kashmir) के इस उद्योग में ज्यादातर महिलाएं ही काम कर रही हैं। पेंसिल और स्लेट से जुड़े इस उद्योग से जिले में करीब 2000 ​लोगों को काम मिला है। ऊखू गांव के घरों में ही छोटी-छोटी यूनिट्स में महिलाएं कुशलता से कारीगरी कर रही हैं। पहले पेंसिल निर्माताओं को सिर्फ लकड़ी दी जाती थी।

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लेकिन अब उस लकड़ी को सीधे पेंसिल में इस्तेमाल करने लायक बनाकर यानी स्लैट या उसे एक पतली पट्टी के तौर पर तैयार करके दिया जा रहा है। अब पुलवामा और लासिपोरा के छोटे बड़े तमाम कारीगर और उद्योगों से जुड़े लोग सरकार से यहां और विकास की उम्मीद कर हैं। पूरे भारत के साथ औद्योगिक रिश्ते बनाने के लिए यहां सबसे पहले एक हाईवे की जरूरत है ताकि उनके माल का आना-जाना बाधित न हो।

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साथ ही यहां बिजली की भी जरूरत है ताकि पिछड़ा उद्योग जगत मुख्यधारा में आ सके। कोल्ड स्टोर, टीएमटी, फोम, लेदर, फेब्रिकेशन, दूध उत्पादन जैसे कई सारे उद्योग यहां हजारों लोगों को रोजगार मुहैया करा रहे हैं। इन सबको और भी विकसित करने की जरूरत है, जिससे यह क्षेत्र देश की अर्थव्यवस्था में अपना योगदान दे सके।