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नक्सल प्रभावित इलाकों में CRPF की वजह से आ रहा बड़ा बदलाव, मोबाइल और इंटरनेट ने बदली जिंदगी

सांकेतिक तस्वीर

अगर यहां के लोगों को किसी कारण से एंबुलेंस नहीं मिलती तो CRPF अपनी गाड़ी उपलब्ध करवाती है। एक दौर था जब इन इलाकों में नक्सली मोबाइल टावर नहीं लगने दे रहे थे, लेकिन टावर के लगने के बाद यहां के लोग बाहरी दुनिया से जुड़े और उनका विकास हुआ।

देश के नक्सल प्रभावित इलाकों में बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है और इसके पीछे सीआरपीएफ (CRPF) की प्रेरणा है। नक्सल प्रभावित इलाकों जैसे सुकमा, बीजापुर, राजनांदगांव, खूंटी, दंतेवाड़ा, लातेहार, गिरिडीह, पलामू, गढ़चिरोली और जमुई आदि में बदलाव हो रहा है।

ये इलाके पहले विकास से कोसों दूर थे लेकिन अब यहां मोबाइल टावर भी लग गया है और यहां के लोग गूगल भी चलाते हैं। सूचना क्रांति होने के बाद यहां के लोगों ने शिक्षा पर ध्यान दिया और अपने बच्चों को पढ़ने के लिए बाहर भेजा। CRPF ने भी इस काम में बहुत मदद की और जो बच्चे बाहर नहीं जा सके, उनके लिए कंप्यूटर लैब की व्यवस्था की।

अब इन इलाकों में CRPF का मजबूत नेटवर्क है इसलिए इन इलाकों में रहने वाले लोगों को मूलभूत सुविधाओं के लिए असुविधा का सामना नहीं करना पड़ता है। सड़क, परिवहन और स्वास्थ्य संबंधी सेवाओं में सुधार हुआ है।

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अगर यहां के लोगों को किसी कारण से एंबुलेंस नहीं मिलती तो CRPF अपनी गाड़ी उपलब्ध करवाती है। एक दौर था जब इन इलाकों में नक्सली मोबाइल टावर नहीं लगने दे रहे थे, लेकिन टावर के लगने के बाद यहां के लोग बाहरी दुनिया से जुड़े और उनका विकास हुआ। टावरों को नक्सलियों से बचाने के लिए CRPF के जवानों की तैनाती की गई। गांव में लोगों ने इंटरनेट का कनेक्शन लिया तो उन्हें बाहरी दुनिया के बारे में जानकारी मिली।

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक केंद्र सरकार ने इन इलाकों के लिए 2217 मोबाइल टावर स्वीकृत किए हैं। इसके अलावा यहां 2 हजार डाकघर भी खोले जाएंगे।

अच्छी बात ये है कि इन इलाकों में नक्सली हिंसा के मामलों में कमी आई है। 2009 में वामपंथी उग्रवाद हिंसा की घटनाएं 2258 थीं जोकि 2019 में 70 फीसदी घटकर 670 हो गई हैं।

सुरक्षाबल और आम नागरिकों की मौत के मामलों में भी कमी आई है। 2010 में जान गंवाने वालों का आंकड़ा 1005 था, जोकि 80 फीसदी घटकर वर्ष 2019 में 202 रह गया है।

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