नक्सली नुनूचंद महतो (Nunchand Mahato) ने कभी सोचा नहीं होगा कि एक दिन वह खूनी खेल रचकर दहशत का दूसरा नाम बन जाएगा, लेकिन कब क्या होगा, ये तो भविष्य के गर्त में ही छिपा होता है।
गिरिडीह: झारखंड की गिरिडीह पुलिस के सामने सरेंडर करने वाले 5 लाख के इनामी नक्सली नुनूचंद महतो के बारे में चर्चाओं का बाजार गरम है। हर कोई ये सोच रहा है कि आखिर इस कुख्यात नक्सली ने अचानक नक्सलवाद का रास्ता क्यों छोड़ दिया और क्यों हथियार डाल दिए। लोग ये भी जानना चाहते हैं कि आखिर नुनूचंद नक्सली क्यों और कैसे बन गया।
35 साल की उम्र में रखा नक्सलवाद की दुनिया में कदम
नुनूचंद महतो ने कभी सोचा नहीं होगा कि एक दिन वह खूनी खेल रचकर दहशत का दूसरा नाम बन जाएगा, लेकिन कब क्या होगा, ये तो भविष्य के गर्त में ही छिपा होता है।
खोखरा थाना क्षेत्र के भेलवाडीह गांव के निवासी नुनूचंद महतो ने जब नक्सल क्षेत्र में प्रवेश किया, तब उसकी उम्र 35 साल थी। उसने अंधविश्वास की वजह से अपने पारिवारिक और सामाजिक जीवन से दूरी बना ली और नक्सली बन गया।
अंधविश्वास की वजह से नक्सली बना नुनूचंद महतो
नुनूचंद और उसके चचेरे भाई ने अपने ही गांव के पुनीत महतो के 8 साल के बेटे की हत्या कर दी थी। वह बच्चे को जामुन खिलाने के बहाने नदी किनारे ले गया और डायन बिसाही के आरोप में हत्या कर दी।
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जब बच्चे की खोजबीन शुरू हुई तो कुछ ग्रामीणों ने बताया कि बच्चा नुनूचंद महतो और उसके चचेरे भाई के साथ आखिरी बार देखा गया था। इसके बाद नुनूचंद के चचेरे भाई ने ग्रामीणों के सामने सच कबूल कर लिया कि उसने बच्चे की हत्या कर दी है।
साल 2008 में पहली बार हुई थी नक्सली गोविंद मांझी से मुलाकात
इसके बाद ग्रामीणों ने नुनूचंद महतो और उसके चचेरे भाई की पिटाई कर दी। ग्रामीणों के गुस्से को देखकर नुनूचंद जंगल में भाग गया। साल 2008 में उसकी मुलाकात नक्सली गोविंद मांझी से हुई और फिर नुनूचंद नक्सली बन गया।
साल 2010 में नुनूचंद पारसनाथ क्षेत्र के खूंखार नक्सली अजय महतो की टीम का सदस्य बन गया और धनबाद के टुंडी, गिरिडीह के डुमरी और पीरटांड़ सहित बोकारो के कई थाना क्षेत्रों में नक्सली वारदातों को अंजाम देने लगा। इसके बाद नक्सली संगठन ने उसे पारसनाथ जोन का बॉस बना दिया, जिसके बाद नुनूचंद सबजोनल कमांडर बन गया। नक्सली नुनूचंद पर 3 थानों में 72 केस दर्ज हैं।