अब्दुल्ला (Ghazi Abdullah) ने कश्मीर एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विसेज (केएएस) की परीक्षा में 46 वीं रैंक हासिल की। पिता की मौत के बाद अब्दुल्ला श्रीनगर के बेमिना स्थित बाल अनाथालय में रहे।
जम्मू-कश्मीर (Jammu-Kashmir) के युवाओं में अब नया बदलाव देखने को मिल रहा है। वे अब हिंसा नहीं, बल्कि विकास का रास्ता चुन रहे हैं। इस बात का उदाहरण हैं श्रीनगर के गाजी अब्दुल्ला (Ghazi Abdullah)। श्रीनगर के गाजी अब्दुल्ला के पिता एक आतंकवादी थे और साल 1998 में एक पुलिस मुठभेड़ में मारे गए। लेकिन अब्दुल्ला ने आतंकवाद का रास्ता न चुन कर देश सेवा का रास्ता चुना।
अब्दुल्ला (Ghazi Abdullah) ने कश्मीर एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विसेज (केएएस) की परीक्षा में 46 वीं रैंक हासिल की। पिता की मौत के बाद अब्दुल्ला श्रीनगर के बेमिना स्थित बाल अनाथालय में रहे। वहीं रहकर उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की। गाजी अब्दुल्ला, जिन्होंने ढाई साल की उम्र में अपने पिता को खो दिया था और एक अनाथालय में पले-बढ़े, कश्मीर प्रशासनिक सेवा परीक्षा में 46 वीं रैंक हासिल की है।
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इस खुशी के मौके पर गाजी अब्दुल्ला (Ghazi Abdullah) की तस्वीर सामने आई है। गाजी की मां अपने बेटे को मिठाई खिला रही हैं। गाजी अब्दुल्ला कहते हैं कि अनाथालय में रहने से मेरे अंदर अनुशासन आया और इस सफलता का श्रेय मेरी मां को जाता है। जम्मू संभाग के डोडा के पिछड़े गांव गुंदना के गाजी को अफसर बनते देख मां की खुशी का ठिकाना नहीं है।
जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के 70 उम्मीदवार इस बार केएएस (कश्मीर प्रशासनिक सेवा) के लिए चुने गए हैं। गाजी इन सभी में सबसे अलग हैं। गाजी का बचपन बाल आश्रम में बीता है। जब वह दो साल के थे। उनके पिता मोहम्मद अब्दुल्ला बट निजी स्कूल में शिक्षक थे। साल 1998 में आतंकवादी वारदातों में संलिप्त होने की वजह से वे मुठभेड़ में मारे गए।
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मां ने बड़ी मुश्किल से गाजी (Ghazi Abdullah) को पांचवीं तक स्थानीय स्कूल में पढ़ाया। बच्चे की लगन देखकर आंगनबाड़ी में मददगार मां नगीना बेगम ने आतंकवाद के साए से दूर रखकर गाजी को श्रीनगर के बेमिना में स्थित बाल आश्रम में भेज दिया।
गाजी ने 12वीं तक पढ़ाई श्रीनगर के बाल आश्रम में रहकर पूरी की। श्रीनगर में रह कॉलेज में पढ़ना उसके बस में नहीं था। 18 साल के बाद आश्रम में रहने की इजाजत नहीं थी। काम धंधा भी कोई नहीं था। गाजी (Ghazi Abdullah) ने डोडा लौटने का फैसला किया और डोडा स्थित सरकारी कॉलेज में दाखिला ले लिया।
गाजी बताते हैं, “मैं कॉलेज में पढ़ता था तो अपना खर्च निकालने के लिए शाम को स्थानीय बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने लगा। निजी स्कूल में भी पढ़ाया। इस तरह से जिंदगी की गाड़ी धीरे धीरे आगे बढ़ने लगी। कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद मैंने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया। वहां से मैंने बॉटनी में स्नातकोत्तर किया है।”
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गाजी आगे बताते हैं, “मैं शुरू से सिविल सर्विसेज में जाना चाहता था। कॉलेज की पढ़ाई पूरी होने के बाद इसके लिए तैयारी शुरू कर दी थी। सच पूछो तो मेरी मां की मेहनत और दुआ का नतीजा है। उसकी मेहनत और दुआओं ने हमेशा मुझे ईमानदारी और सब्र के साथ आगे बढ़ने का हौसला दिया है।”