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देश में पहली बार हुआ ड्रोन अटैक, सुरक्षा एजेंसियों की मुश्किलें बढ़ीं, जानें आतंकी क्यों कर रहे इसका इस्तेमाल

ड्रोन से सीमा में घुसपैठ, सुरक्षा एजेंसियों के लिए सरदर्द तो पहले ही था। लेकिन अब ड्रोन से अटैक (Drone Attack) गंभीर मसला बन गया है।

जम्मू में एयरफोर्स स्टेशन (Jammu Air Force Station) में हुए ड्रोन हमलों (Drone Attack) में हालांकि कोई बड़ा नुकसान नहीं हुआ, लेकिन बीते कुछ सालों में आतंकियों द्वारा हो रहा ड्रोन्‍स का इस्‍तेमाल चिंता का सबब है। देश में पहली बार ड्रोन के जरिए किसी सुरक्षा संस्था पर हमला हुआ है। यह सुरक्षा एजेंसियों के लिए बड़ी चुनौती बन गई है। 

निगरानी करने के साथ ही आतंकियों को हथियार सप्लाई करने के लिए भी ड्रोन का इस्तेमाल पिछले दो सालों में बढ़ा है। ड्रोन से सीमा में घुसपैठ, सुरक्षा एजेंसियों के लिए सरदर्द तो पहले ही था। लेकिन अब ड्रोन से अटैक (Drone Attack) गंभीर मसला बन गया है। खतरा सिर्फ यही नहीं है कि ड्रोन के जरिए विस्‍फोट किया जा सकता है या हथियारों की सप्लाई की जा सकती है, बल्कि आतंकी ड्रोन्‍स के जरिए बायोलॉजिकल या केमिकल एजेंट्स भी डिलिवर कर सकते हैं।

भारतीय सीमा में पहले भी पकड़े गए हैं ड्रोन

गौरतलब है कि पाकिस्तान ने आतंकियों को हथियार सप्लाई करने के लिए साल 2019 से ड्रोन का इस्तेमाल बढ़ाया है। 13 अगस्त 2019 को अमृतसर के एक गांव में क्रैश होने के बाद एक ड्रोन पकड़ा गया। फिर उसी साल सिंतबर में तरन तारन, पंजाब में पकड़े गए एक आतंकी ने खुलासा किया कि ड्रोन ने आठ चक्कर लगातार हथियार गिराए थे।

पिछले साल 19 सितंबर को जम्मू-कश्मीर पुलिस ने लश्कर-ए-तयैबा की तीन आतंकियों को गिरफ्तार किया था। उन्हें एक रात पहले ही पाकिस्तान से ड्रोन के जरिए हथियारों की सप्लाई मिली थी। इसके अलावा, 20 जून, 2020 को बीएसएफ ने जम्म-कश्मीर के कठुआ जिले में एक जासूसी ड्रोन को मार गिराया था, साथ ही हथियार और विस्फोटक भी बरामद किए थे।

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22 सितंबर, 2020 को भी जम्मू-कश्मीर पुलिस ने अखनूर सेक्टर को ड्रोन से डिलीवर किए गए हथियार बरामद किए। फिर दिसंबर में पंजाब पुलिस ने गुरदासपुर जिले में पाकिस्तान बॉर्डर के पास आठ हैंड ग्रेनेड बरामद किए, कहा गया कि यह पाकिस्तानी ड्रोन ने गिराए थे। इसी साल पिछले महीने ही 14 तारीख को जम्मू कश्मीर के सांबा जिले में बीएसएफ ने पाकिस्तानी ड्रोन से गिराए गए हथियार बरामद किए।

निगरानी के लिए होता था इस्तेमाल

बता दें कि ड्रोन्‍स मानवरहित विमान हैं, जिनका इस्‍तेमाल खासकर के निगरानी के लिए होता है। इनका आकार सामान्‍य विमान या हेलिकॉप्‍टर्स के मुकाबले काफी कम होता है। 1990 के दशक में अमेरिका ड्रोन का इस्‍तेमाल मिलिट्री सर्विलांस के लिए करता था। अब ड्रोन्‍स का इस्‍तेमाल फिल्‍मों की शूटिंग, फोटोग्राफी, सामान की डिलिवरी से लेकर काफी सारी चीजों में होने लगा है।

क्‍वाडकॉप्‍टर ऐसा ड्रोन होता है जिसमें चार रोटर होते हैं। दो क्‍लॉकवाइज घूमते हैं और बाकी दो ऐंटी-क्‍लॉकवाइज। इनकी मदद से ड्रोन को किसी भी दिशा में उड़ाया जा सकता है। इन्‍हें बनाना और कंट्रोल करना ज्‍यादा आसान होता है।

दुनिया के कई देशों की सेनाएं सर्विलांस के लिए ड्रोन्‍स का इस्‍तेमाल करती हैं। 2019 की एक रिपोर्ट बताती है कि 2019 तक दुनियाभर में 80 हजार से ज्‍यादा सर्विलांस ड्रोन और 2,000 से ज्‍यादा अटैक ड्रोन्‍स खरीदे जाएंगे। अमेरिका, चीन, रूस, इजरायल, भारत, फ्रांस, ऑस्‍ट्रेलिया समेत कई देशों में ड्रोन्‍स का खूब इस्‍तेमाल होता है।

आतंकियों ने हमलों के लिए शुरू किया ड्रोन का इस्तेमाल

लेकिन अब इन्हीं ड्रोन्स का इस्तेमाल आतंकी तबाही मचाने के लिए कर रहे हैं। कॉमर्शियल ड्रोन्‍स साइज में छोटे होते हैं और ज्‍यादा शोर नहीं करते। इसी वजह से ये आतंकियों को भा रहे हैं। यह आराम से डेढ़-दो घंटे उड़ान भर सकते हैं। अपने साथ 4-5 किलो वजन ले जा सकते हैं। सबसे बड़ी दिक्‍कत यह है कि रडार के जरिए इन ड्रोन्‍स को ट्रेस और ट्रैक कर पाना मुश्किल है। ऐसे में आतंकी इन ड्रोन्‍स के जरिए आसानी से अपनी जान को खतरे में डाले बिना बड़ा हमला कर सकते हैं।

दरअसल, साल 2000 से पहले तक ड्रोन्‍स का इस्‍तेमाल निगरानी रखने के लिए ही होता था। लेकिन 11 सितंबर, 2001 को अमेरिका में अल-कायदा के हमले के बाद से अमेरिका ने अपने प्रीडेटर ड्रोन्‍स पर हथियार लगाने शुरू कर दिए। अक्‍टूबर, 2001 में अफगानिस्‍तान में पहली ड्रोन स्‍ट्राइक की गई। इसके बाद से अमेरिका ने अफगानिस्‍तान के अलावा इराक, पाकिस्तान, सोमालिया, यमन, लीबिया और सीरिया में भी ड्रोन हमले किए हैं। इसके बाद से आतंकी संगठन इस्‍लामिक स्‍टेट ने इराक और सीरिया में छोटे ड्रोन्‍स से हमले किए।

चुनौती से निपटने के लिए भारत की तैयारी

DRDO ने दो ऐंटी-ड्रोन सिस्‍टम डिवेलप किए हैं। एक की रेंज 2 किलोमीटर है और दूसरे की 1 किलोमीटर मगर दोनों का ही बड़ी संख्‍या में उत्‍पादन अभी शुरू नहीं हुआ है। सेना अन्‍य सिस्‍टम जैसे इजरायली Smash-2000 Plus का आयात कर रही है। इन्‍हें बंदूकों या राइफलों पर लगाकर छोटे ड्रोन्‍स को दिन या रात, किसी भी वक्‍त निशाना बना सकते हैं। हालांकि, अभी इसका इस्तेमाल शुरू होने में वक्त है।