लंदन में संसद भवन परिसर (British Parliament) में कश्मीर के मुद्दे पर चर्चा में कुछ सांसदों के भाग लेने पर निराशा प्रकट करते हुए भारत ने कहा कि यह चर्चा ‘एक तीसरे देश’ (पाकिस्तान) द्वारा किये गये झूठे दावों और आरोपों पर आधारित थी। हाउस ऑफ कॉमन्स (British Parliament) के वेस्टमिंस्टर हॉल में कुछ ब्रिटिश सांसदों द्वारा आयोजित चर्चा का टॉपिक ‘कश्मीर में राजनीतिक परिस्थिति’ था।
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हालांकि लंदन में भारतीय उच्चायोग ने इस तरह के शब्दों के इस्तेमाल पर भी कड़ी आपत्ति जताते हुए ब्रिटिश सासंदों को ही समस्या से प्रेरित बताया। भारतीय उच्चायोग ने अपने बयान में बताया कि केंद्रशासित प्रदेश जम्मू कश्मीर, जो भारत का अभिन्न अंग है और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के बीच अंतर समझने की जरूरत है। क्योंकि कश्मीर राज्य को कानूनी तरीके से अक्टूबर 1947 में भारत में शामिल किया गया था, लेकिन इस हिस्से को पाकिस्तान ने जबरन और अवैध तरीके से कब्जा कर रखा है।
उच्चायोग ने ये भी बताया कि संसद (British Parliament) में इस बात पर भी संज्ञान लिया गया कि जमीनी रूप से दिखने वाले तथ्यों और मिथ्या साक्ष्य के आधार पर सार्वजनिक रूप से मौजूद पुख्ता जानकारी होने के बावजूद, भारत के केंद्रशासित प्रदेश जम्मू कश्मीर के संदर्भ में, मौजूदा जमीनी हकीकत की अनदेखी की गयी और एक तीसरे देश द्वारा किये जाने वाले झूठे दावों को प्रदर्शित किया गया जिनमें ‘नरसंहार’ और ‘हिंसा’ तथा ‘प्रताड़ना’ जैसे अपुष्ट आरोप थे।
हालांकि ब्रिटेन की सरकार की ओर से संसद (British Parliament) में इस चर्चा का जवाब देते हुए विदेश, राष्ट्रमंडल और विकास कार्यालय के मंत्री निगेल एडम्स ने सरकार के आधिकारिक रुख को फिर से दोहराया कि ब्रिटेन को भारत-पाकिस्तान के द्विपक्षीय मामले में कोई मध्यस्थ भूमिका नहीं निभानी। हालांकि उन्होंने कहा कि नियंत्रण रेखा (एलओसी) के दोनों ओर मानवाधिकार संबंधी चिंताएं हैं।
लेबर पार्टी की सारा ओवेन ने भी कथित मानवाधिकार उल्लंघन पर चिंता जताई और ब्रिटेन की सरकार से क्षेत्र तक सुगम पहुंच के लिए अनुरोध किया ताकि भविष्य में जम्मू कश्मीर और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) से सीधी रिपोर्ट ब्रिटिश संसद में पेश की जा सके।