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कोरोना से सबसे ज्यादा देश के श्रमिक पीड़ित, सरकार के सर पर मंडरा रहा देशव्यापी आंदोलन का खतरा

Coronavirus Migrants Worker

सरकार के मंत्रालय अब कोरोना (Coronavirus) की बजाय रोजगार की फिक्र कर रहे हैं। असल फिक्र यह है कि लॉकडाउन (Lockdown) की वजह से रोजगार का जो संकट खड़ा हुआ है कहीं उसे लेकर विपक्ष, श्रमिकों (Workers) के साथ संयुक्त रूप से देशव्यापी आंदोलन न छेड़ दे। सरकार को भी जानकारी है कि इस मुद्दे पर कांग्रेस की सीपीएम नेता सीताराम येचुरी, सीपीआई नेता डी राजा, एनसीपी नेता शरद पवार, डीएमके नेता स्टालिन, जेडीयू नेता मनोज झा, शरद यादव इत्यादि से लगातार बात हो रही है।

पश्चिम बंगाल में कोरोना (Coronavirus) की स्थिति को लेकर कांग्रेस की चुप्पी की भी वजह यह है कि श्रमिकों के मुद्दे पर बड़े आंदोलन की बात चल रही है। अभी यह स्पष्ट नहीं है कि तृणमूल नेता ममता बनर्जी, बीएसपी नेता मायावती, एसपी नेता अखिलेश यादव साथ आएंगे अथवा नहीं। हालांकि यह तय है कि ये नेता श्रमिकों (Workers) के मुद्दों को अपने अपने ढंग से उठाएंगे। कांग्रेस श्रमिकों के आंदोलन में किसानों की परेशानियों को भी शामिल करना चाहती है।

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इधर, वामदलों ने कोरोना में श्रमिकों (Workers) की बदहाली के मुद्दे पर कुछ अन्य दलों के सांसदों के साथ राष्ट्रपति को एक ज्ञापन भी सौंपा है। सरकार के विभिन्न मंत्रालय भी परोक्ष रूप से जानते हैं कि पैदल चलते श्रमिकों की असंख्य तस्वीरों के सामने आने से सरकार की छवि पर बुरा असर पड़ा है। अधिकतर राज्यों में बीजेपी की सरकार होने से केंद्र सरकार की मजबूरी है कि वह उन्हें जिम्मेदार नहीं ठहरा सकती।

विपक्ष के सक्रिय होने की वजह से मंत्रालय रोजगार की संभावना वाली योजनाएं बनाने में जुट गए हैं। आरएसएस के श्रमिक और किसान संगठन से सरकार ने काफी सुझाव लिए हैं कि कैसे श्रमिकों (Workers) और किसानों का असंतोष कम किया जा सकता है। श्रमिक एक्सप्रेस ट्रेन चलवाने के पीछे भी रेल मंत्रालय से ज्यादा भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) का अधिक दिमाग है। सीएम से सीधे प्रधानमंत्री ने सुझाव लिए हैं और गृहमंत्री व अन्य मंत्रियों ने उनके नेताओं से भेंट की है।

अभी साफ नहीं है कि श्रमिक आंदोलन के मुद्दे पर श्रमिक संगठन और राजनीतिक दल साथ आएंगे अथवा नहीं। वामदलों के श्रमिक संगठन अवश्य अपने दलों के साथ मशवरा कर रहे हैं। ग्यारह प्रमुख श्रमिक संगठनों ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर कहा कि श्रम कानूनों को खत्म करने से श्रमिकों (Workers) की सेहत बिगड़ेगी। इसकी काट के लिए बीएमएस जोर देकर कह रहा है कि वाम शासित केरल और कांग्रेस शासित पंजाब- राजस्थान में श्रमिकों के साथ कौन सा अच्छा व्यवहार हो रहा है।

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