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छत्तीसगढ़: कोरोना काल में स्कूलों के बंद होने का फायदा उठा रहे नक्सली, कर रहे बच्चों को बरगलाने का काम

सांकेतिक तस्वीर

नक्सली (Naxalites) कोरोना (Coronavirus) काल में स्कूलों के बंद होने का फायदा उठा रहे हैं। बच्चों को नक्सली अब अपने स्कूल में पढ़ाने के नाम पर बरगला रहे हैं।

नक्सली (Naxalites) अपनी नापाक हरकतों को अंजाम देने का कोई भी मौका नहीं छोड़ते। वे अब कोरोना काल में स्कूलों के बंद होने का फायदा उठा रहे हैं। छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) में जब कोरोना (Coronavirus) की वजह से सरकारी स्कूल बंद हुए तो नक्सली इलाकों के बच्चे गांव लौट गए।

ऐसे बच्चों को नक्सली अब अपने स्कूल में पढ़ा रहे हैं। खुफिया रिपोर्ट्स में यह बात सामने आई है कि पढ़ाई के नाम पर नक्सली बच्चों को सुरक्षाबलों की रेकी करने की ट्रेनिंग दे रहे हैं।

बस्तर आइजी सुंदरराज पी का कहना है कि स्कूलों के बंद होने का फायदा नक्सली उठा रहे हैं। हालांकि, वह कहते हैं कि जब स्कूल खुलेंगे तो हालात फिर से सुधर जाएंगे। बता दें कि नक्सली अपने इलाके में बच्चों के लिए कथित स्कूल चलाते हैं। सरकार की तर्ज पर छात्रावास और भोजन का इंतजाम भी वह अपने स्कूलों में करते हैं।

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गौरतलब है कि अपने इलाके के सरकारी स्कूलों को नक्सलियों ने तोड़ दिया है। ऐसे में सरकार ने बच्चों के लिए पोर्टाकेबिन स्कूलों की स्थापना की है। बांस से बने ये स्कूल पोर्टेबल हैं और इन्हें एक जगह से दूसरी जगह स्थानांतरित किया जा सकता है। छत्तीसगढ़ राज्य सरकार ने अपने स्कूल खोल दिए हैं पर पोर्टाकेबिन स्कूलों का संचालन केंद्र सरकार की योजना के तहत किया जा रहा है जो अभी नहीं खुले हैं। पोर्टाकेबिन में ही दूरदराज के नक्सल प्रभावित इलाकों के बच्चे पढ़ते हैं।

बता दें कि साल 2013 में फोर्स ने बीजापुर जिले के धुर नक्सल इलाके में स्थित जप्पेमरका गांव में संचालित नक्सलियों की पाठशाला को ढूंढ़ निकाला था। फोर्स उनकी आश्रमशाला को तोड़कर चली आई तो उन्होंने पहली बार मीडिया को बुलाकर अपना स्कूल दिखाया था। नक्सली (Naxalites) शिक्षा के नाम पर मां-बाप से बच्चे छीन ले जाते हैं।

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नक्सल स्कूलों में शब्द ज्ञान, गणित और विज्ञान का मामूली पाठ्यक्रम होता है। इसके अलावा वहां कथित क्रांति के पाठ पढ़ाए जाते हैं। जानने वाले बताते हैं कि स्कूलों में ही उन्हें बम बनाने, शारीरिक दक्षता व हथियार चलाने की ट्रेनिंग दी जाती है। अपने आधार इलाकों में नक्सली मासूम बच्चों की मांग करते हैं, मना करने पर उनके स्वजनों को गांव से निकालने की धमकी दी जाती है।

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बस्तर के आइजी सुंदरराज पी के मुताबिक, “स्कूल बंद होने से बच्चे गांव लौटे तो दोबारा नक्सलियों के संपर्क में आ गए हैं। स्कूल खुलेंगे तो स्थिति बदलेगी। हमारा प्रयास है कि उनके इलाकों को खत्म कर मुख्यधारा में जोड़ा जाए। बच्चे जब उनके संपर्क में रहेंगे नहीं तो उनका असर भी नहीं होगा। फोर्स प्रयास कर रही है कि वह बच्चों का ब्रेनवाश न कर पाएं।