सरकार और प्रशासन की कोशिशों की वजह से बीते 6 महीने में केवल दंतेवाड़ा जिले में ही करीब 300 नक्सलियों (Naxalites) ने आत्मसमर्पण किया है।
बीते चार दशकों से नक्सलवाद (Naxalims) का दंश झेल रहे छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के बस्तर (Bastar) में हालत तेजी से करवट ले रहे हैं। पिछले तीन साल में सुरक्षाबलों ने अंदरूनी इलाकों तक अपनी पैठ मजबूत की है। हाल ही में बीजापुर जिले को तेलंगाना से जोड़ने वाले रास्ते पर गलगम में फोर्स का कैंप खुला है।
दंतेवाड़ा से नारायणपुर तक जाने वाली सड़क दशकों से बंद थी, फोर्स ने अब उस सड़क पर कैंप लगा दिया है। अबूझमाड़ में सोनपुर, आकाबेड़ा, कोहकामेटा, बासिंग आदि कैंप खुले हैं। बीजापुर से पामेड़ का रास्ता भी खुल गया है। दंतेवाड़ा और बीजापुर की ओर से अबूझमाड़ में पहुंच बनाने के लिए इंद्रावती नदी पर तीन पुल बनाए जा रहे हैं। सुकमा जिले में जगरगुंडा तक जाने वाले तीनों रास्तों पर काम चल रहा है।
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सरकार और प्रशासन की कोशिशों की वजह से बीते 6 महीने में केवल दंतेवाड़ा जिले में ही करीब 300 नक्सलियों (Naxalites) ने आत्मसमर्पण किया है। यहां चलाए जा रहे एंटी नक्सल अभियान (Anti Naxal Operations) सकारात्मक असर दिखा रहे हैं। सुरक्षाबलों के बढ़ते दबाव का नतीजा है कि बस्तर में पहली बार नक्सलियों ने बातचीत की पेशकश की है। बुरी तरह घिर चुके नक्सली अब समाधान की राह तलाशने लगे हैं।
नक्सलियों (Naxals) ने मांगों की आड़ में बातचीत के प्रस्ताव का पर्चा जारी किया है। हालांकि, नक्सलियों (Naxalites) ने वार्ता की ऐसी शर्तें रखी हैं जिसे मानने के लिए सरकार शायद ही राजी हो। उनकी शर्तों में बस्तर से फोर्स हटाने, नक्सली नेताओं (Naxal Leaders) की बिना शर्त रिहा किए जाने और माओवादी संगठन से प्रतिबंध हटाने की मांग प्रमुख हैं।
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इस बाबत छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू ने कहा है कि सरकार की मंशा शांति स्थापित करना है। नक्सलियों के प्रस्ताव पर विचार किया जाएगा पर यह नहीं कह सकते कि क्या कदम उठाएंगे। यह एक दिन का मुद्दा नहीं है। मुख्यमंत्री से चर्चा के बाद आगे के कदमों को लेकर फैसला किया जाएगा।