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खुद आराम की जिंदगी जीते हैं नक्सली नेता, मासूम गांववालों का करते हैं शोषण

बिहार के मुंगेर, जमुई व लखीसराय के आदिवासी बाहुल्य गांवों के हार्डकोर नक्सली लाखों के मालिक हैं। गरीब, शोषित, पीड़ित, आदिवासियों के हक और अधिकार की बात करने वाले नक्सली संगठन के बड़े लीडर और हार्डकोर नक्सलियों (Naxals) की विचारधारा एकदम खोखली है।

सांकेतिक तस्वीर।

बिहार के मुंगेर, जमुई व लखीसराय के आदिवासी बाहुल्य गांवों के हार्डकोर नक्सली (Naxals) लाखों के मालिक हैं। गरीब, शोषित, पीड़ित, आदिवासियों के हक और अधिकार की बात करने वाले नक्सली संगठन के बड़े लीडर और हार्डकोर नक्सलियों की विचारधारा एकदम खोखली है। ये नक्सली (Naxals) मासूम लोगों पर जुल्म करते हैं, लेकिन गांवों में किसी बड़े अधिकारी की तरह पूरी सुरक्षा के बीच रहते हैं। नक्सली गांव के गरीब आदिवासियों से कब्जा जमाए खेतों में दिहाड़ी मजदूरी कराते हैं। उनके बच्चों को पढ़ने-लिखने नहीं देते हैं।

भीमबांध जंगल से सटे नक्सल प्रभावित चोरमारा गांव नक्सली संगठन के बड़े लीडर हार्डकोर नक्सली बालेश्वर कोड़ा और अर्जुन कोड़ा का गांव है। इस गांव में 60-70 परिवार रहते है। इसमें अधिकांश के घर मिट्टी व फूस के हैं। 3-4 परिवारों का घर खपरैल का है। जबकि, इस गांव में मात्र बालेश्वर कोड़ा और अर्जुन कोड़ा का ही घर पक्का बना हुआ है। ग्रामीणों की मानें तो चोरमारा गांव के बड़ी टोला में ही बालेश्वर कोड़ा, अर्जुन कोड़ा सहित तीन अन्य हार्डकोर नक्सली (Naxals) रहते हैं। सरकार की जमीन उनलोगों ने कब्जा कर रखी है। इस जमीन पर ये नक्सली आदिवासियों से ही दिहाड़ी मजदूरी करवा कर अनाज उपजाते हैं।

खेतों में उपजने वाली फसल और लेवी के रुपयों से उनकी आर्थिक स्थिति काफी मजबूत है। ग्रामीणों के मुताबिक, गांव के सभी हार्डकोर नक्सली (Naxals) किसी बड़े अधिकारी के तरह ही गांव में रहते है। नक्सली अपने घर में आराम से रात बीताते हैं। पुलिस द्वारा गांव में छापेमारी करने या कोई कार्यक्रम करने के बाद नक्सली ग्रामीणों को शक की नजर से देखते हैं। वे पुलिस के जाने के बाद उनकी पिटाई करते हैं। यह कहते हैं कि ये लोग पुलिस की मुखबिरी करते हैं। नक्सली गांव वालों को दहशत में रखते हैं।

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