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शहीद दिवस स्पेशल: फांसी से पहले जेल में किस क्रांतिकारी की जीवनी पढ़ रहे थे भगत सिंह? यहां जानें

एक तरफ भगत सिंह (Bhagat Singh) को फांसी देने की तैयारी की जा रही थी और दूसरी तरफ देशभर में प्रदर्शन हो रहे थे। देश की जनता चाहती थी कि भगत सिंह को फांसी ना दी जाए। लेकिन अंग्रेज सरकार भगत सिंह से डरी हुई थी

नई दिल्ली: आज का दिन देश के इतिहास के सबसे बड़े दिनों में से एक है। इसी दिन 23 मार्च 1931 को देश के महान क्रांतिकारी भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी दी गई थी। इस दिन को देश शहीद दिवस के रूप में मनाता है।

फांसी से पहले भगत सिंह (Bhagat Singh) करीब 1 साल 350 दिन जेल में रहे थे। लेकिन फांसी से पहले उनके चेहरे पर कोई उदासी नहीं थी। वह खुश थे क्योंकि वे जानते थे कि वे अपने देश के लिए कुर्बान हो रहे हैं। इससे गर्व की बात उनके लिए कोई दूसरी नहीं थी।

हालात का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जब इन तीनों क्रांतिकारियों को फांसी देने के लिए ले जाया जा रहा था, तो जेल के सारे कैदी रो रहे थे, लेकिन ये तीनों महान क्रांतिकारी हंस रहे थे। भगत सिंह जानते थे कि उनकी शहादत अंग्रेजी हुकूमत के लिए काल बनेगी और भारत स्वतंत्र हो सकेगा।

एक तरफ भगत सिंह (Bhagat Singh) को फांसी देने की तैयारी की जा रही थी और दूसरी तरफ देशभर में प्रदर्शन हो रहे थे। देश की जनता चाहती थी कि भगत सिंह को फांसी ना दी जाए। लेकिन अंग्रेज सरकार भगत सिंह से डरी हुई थी, इसलिए अंग्रेजी हुकूमत ने 24 मार्च की जगह एक दिन पहले 23 मार्च को ही भगत सिंह को फांसी देने का हुक्म दिया। ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि आदेश के मुताबिक भगत सिंह को 24 मार्च को फांसी दी जानी थी, इसलिए देशभर से लोग इस फांसी के विरोध में इकट्ठा हो रहे थे। ये फांसी रुक ना जाए, इसलिए अंग्रेजों ने चोरी-छिपे भगत सिंह को तय दिन से एक दिन पहले ही फांसी दे दी।

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जितेंद्र सान्याल की किताब ‘भगत सिंह’ के मुताबिक, फांसी से पहले भगत सिंह ने डिप्टी कमिश्नर की तरफ मुस्कुराते हुए कहा था कि मिस्टर मजिस्ट्रेट, आप बहुत लकी हैं, जो यह देख पा रहे हैं कि भारत के क्रांतिकारी अपने आदर्शों के लिए किस तरह फांसी पर भी झूल जाते हैं।

भगत सिंह को पढ़ने-लिखने का भी बहुत शौक था। फांसी से पहले वह जेल में ‘लेनिन’ की जीवनी पढ़ रहे थे। जब पुलिसकर्मी ने उनसे कहा कि आपकी फांसी का समय हो गया है, तो भगत सिंह ने लेनिन को पढ़ते हुए कहा कि जरा ठहरिए, एक क्रांतिकारी को दूसरे क्रांतकारी से मिल तो लेने दीजिए। कहा जाता है कि इसके एक मिनट बाद तक भगत सिंह लेनिन की जीवनी पढ़ते रहे और फिर किताब को ऊपर उछालकर बोले- चलिए अब चला जाए।