Hindi News (हिंदी समाचार), News in Hindi, Latest News In Hindi

Indo-China War 1962: …जब गंगोत्री हिमालय में तप करने वाले साधुओं ने की भारतीय सेना की मदद

स्वामी सुंदरानंद

Indo-China War 1962: उत्तराखंड के उत्तरकाशी में रहने वाले स्वामी सुंदरानंद (Swami Sundaranand) भी उन साधुओं में से एक थे जिन्होंने सेना (Indian Army) के लिए पथ-प्रदर्शक के रूप अपना योगदान दिया था।

भारत और चीन के बीच 1962 में लड़े गए युद्ध में गंगोत्री हिमालय में तप करने वाले साधुओं ने भी भारतीय सेना (Indian Army) की मदद की थी। इस युद्ध में हमारे वीर सपूतों ने पूरा दमखम दिखाया था, लेकिन अंत में हार का ही सामना करना पड़ा था।

युद्ध में चुनौतियां कई सारी थीं, जिसे हमारे सेना के जवान बहुत ज्यादा दिनों तक झेल नहीं पाए थे। युद्ध में एक वक्त ऐसा भी आया था जब गंगोत्री हिमालय में तप करने वाले साधुओं ने भारतीय सेना के लिए सीमांत प्रहरी की भूमिका निभाई थी।

Indo-China War 1962: सीमा को लेकर तिब्बत से हुआ समझौता नहीं मानता है चीन

उत्तराखंड के उत्तरकाशी में रहने वाले स्वामी सुंदरानंद (Swami Sundaranand) भी उन साधुओं में से एक थे, जिन्होंने सेना के लिए पथ-प्रदर्शक के रूप में अपना योगदान दिया था। 95 साल के सुंदरानंद ने युद्ध के उन दिनों को याद कर अपनी भूमिका के बारे में कई बातें साझा की हैं।

वे बताते हैं, “मैंने भारतीय सेना को उत्तरकाशी की नेलांग घाटी से चमोली के घसतोली और माणा पास होते हुए जोशीमठ तक पहुंचाया था। इस अभियान में करीब एक माह का समय लगा था। उन दिनों बॉर्डर तक सड़कों का निर्माण नहीं हो सका था। उत्तरकाशी जिले में भारत-चीन सीमा 122 किमी लंबी है और सेना के जवानों के लिए यह इलाका एकदम नया था। ऐसे में मैंने अपनी देशसेवा का परिचय देते हुए अपना योगदान दिया था।”

ये भी देखें-

स्वामी सुंदरानंद (Swami Sundaranand) ने बताया, “सेना को नेलांग से माणा तक के उच्च हिमालयी रास्तों की बिल्कुल भी जानकारी नहीं थी। मैंने  सेना का गाइड बनकर नेलांग बॉर्डर से माणा बॉर्डर तक जाने वाले उच्च हिमालयी ट्रैक पर हर संभव मदद की थी।”