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शहीद के बेटे ने कहा- दुश्मनों से बदला लिए बिना खून ठंडा नहीं होगा

सरायकेला नक्सली हमले में शहीद गोवर्धन पासवान

Saraikela Naxal Attack: झारखंड के सरायकेल में गुरुवार (14 जून, 2019) को हुए एक नक्सली हमले में शहीद हुए गोवर्धन पासवान के बेटे ने कहा है कि ‘हम भी पुलिस में भर्ती होना चाहते हैं क्योंकि हम अपने पिता के दुश्मनों से बदला लेंगे…नक्सलवाद के समूल नष्ट करने में सरकार का साथ देंगे… जब तक पिता के दुश्मनों से हम बदला नहीं लेंगे तब तक मेरा खून ठंडा नहीं होगा…हम एक सैनिक के पुत्र हैं और हमारे रगों में भी उन्हें का खून दौड़ रहा है।’ यकीनन नक्सलियों की गोली से शहीद होने के बाद जिस तरह से शहीद के बेटे ने नक्सलियों को चेतावनी दी है इससे उनके माथे पर चिंता की लकीर थोड़ी तो जरुर खींच गई होगी। शहीद गोवर्धन का शव 16 जून 2019 की देर रात उनके घर पहुंचा।

गोवर्धन पासवान के घर पर उनकी पत्नी निर्मला हैं और उनके दो बेटे हैं। बिहार के भोजपुर जिले के धोबहा ओपी थाना क्षेत्र के बाघीपाकड़ गांव के रहने वाले एएसआई गोवर्धन पासवान के घरवालों पर इस वक्त गमों का पहाड़ टूट पड़ा है। उनका पार्थिव शरीर जैसे ही गांव पहुंचा उनके अंतिम दर्शन के लिए वहां भारी भीड़ जमा हो गई। कई पुलिसवालों और गांव वालों की उपस्थिति में उनका अंतिम संस्कार किया गया। साल 1998 में गोवर्धन पासवान ने बिहार पुलिस की नौकरी ज्वॉइन की थी। झारखंड के कोडरमा जिले (उस वक्त बिहार में शामिल) में बतौर सिपाही उनकी पहली बहाली हुई थी। बाद में वो पदोन्नति आते गए और एएसआई बन गए। इस दौरान झारखंड, बिहार से अलग हुआ और वह झारखंड कैडर में ही रह गए ।

गोवर्धन के पत्नी का नाम निर्मला देवी है। इन दोनों की शादी साल 1990 में हुई थी। उनके दो बेटे हैं और दो बेटियां। इनमें से एक बेटी की शादी हो चुकी है। बड़ा बेटा सुमित कुमार बीए पार्ट वन में महाराजगंज कॉलेज में पढ़ता है। वही दूसरा बेटा मनजीत उर्फ लालबाबू वीर कुमार सिंह इंटर महाविद्यालय में इंटर पार्ट वन में पढ़ाई कर रहा है। इनकी एक बेटी की शादी पिछले वर्ष (साल 2018) में गंजथाना क्षेत्र के छोटकी सासाराम गांव में हुई थी। छोटी और पापा की लाडली बेटी शीला कुमारी अभी नौंवी कक्षा में पढ़ाई कर रही है। गोवर्धन के माता-पिता की मौत काफी पहले हो चुकी है और उनके चार भाई हैं।

मिलनसार व्यक्तित्व के धनी गोवर्धन पासवान जब कभी गांव आते तो सभी लोगों से बातचीत कर उनका हालचाल लेना नहीं भूलते थे। उनकी अंतिम यात्रा सलेमपुर घाट तक गई और फिर गंगा नदी के किनारे वो पंचतत्व में विलिन हुए। यहां उनके बड़े बेटे सुमित ने उन्हें मुखाग्नि दी। वहीं स्थानीय पुलिस ने उन्हें सलामी भी दी। उस वक्त गंगा नदी घाट पर ऐसा कोई नहीं था जिनकी आंखों में शहीद के शव को देखकर नमी ना हो। वहीं स्थानीय ग्रामीणों ने एक पत्र के माध्यम से गांव के विद्यालय का नाम शहीद के नाम पर रखने की मांग की है। पिता के शहीद होने के बाद बड़े बेटे सुमित ने कहा है कि ‘हमारे पिता हमेशा हमारे साथ रहेंगे।’

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