26 जुलाई, 2010 को सीआरपीएफ को पश्चिम बंगाल के मिदनापुर के जंगलों में 20-25 नक्सलियों के बारे में खुफिया जानकारी मिली। सूचना के आधार पर सीआरपीएफ के सैनिक सर्च ऑपरेशन के लिए मिदनापुर के काम्या गांव जा पहुंचे। यह भी सूचना थी कि उनके साथ गैंग के प्रमुख लीडर्स सिद्धू सोरेन और बुरु भी हैं। जवानों को देखते ही नक्सलियों ने अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी। उन्होंने कई आईईडी विस्फोट भी किए। टुकड़ियों ने नक्सलियों के हमले का मुंहतोड़ जवाब दिया।
2 घंटे तक मुठभेड़ चलती रही। इस मुठभेड़ में कांस्टेबल आशीष कुमार तिवारी को कई गोलियां लगीं। वे बुरी तरह घायल हो गए थे पर उन्होंने असाधारण वीरता का परिचय देते हुए फायरिंग जारी रखी और दुश्मनों को भागने नहीं दिया। मातृभूमि के प्रति प्यार और सर्वोच्च बलिदान के लिए उनकी तत्परता ने हमारे वीर जवानों की छोटी-सी टुकड़ी को दुश्मनों पर वार करते रहने के लिए हिम्मत दी। उन्होंने दुश्मनों के नापाक इरादों को ध्वस्त करने के लिए अंत तक मोर्चा संभाले रखा। बाद में कई गोलियां लगने की वजह से उन्होंने दम तोड़ दिया। उनके बलिदान के कारण ही पुलिस को नक्सलियों के बड़े नेताओं को मार गिराने में कामयाबी मिली। 202 कोबरा बटालियन के कांस्टेबल आशीष कुमार तिवारी को ‘शौर्य चक्र’ (मरणोपरांत) से सम्मानित किया गया है। यह सम्मान उनकी मां ने उनकी तरफ से तत्कालीन राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देवी सिंह पाटिल से ग्रहण किया था।
इस बहादुर सिपाही ने असाधारण वीरता दिखाते हुए वीरगति प्राप्त की। बाद में पीसीपीए के सचिव और एसकेजीएम के नेता रहे टॉप माओ लीडर सिद्धू सोरेन सहित 6 नक्सलियों के शव बरामद किए गए। सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि इस ऑपरेशन में भारी मात्रा में हथियार और गोला-बारूद के अलावा, कैश भी बरामद किया गया था। यह नक्सलियों के खिलाफ चलाए गए बड़े सफल ऑपरेशन्स में एक था। माना जाता है कि मिदनापुर का यह मुठभेड़ नक्सल विरोधी अभियानों के इतिहास में एक वाटरशेड था क्योंकि इसके बाद उस क्षेत्र में नक्सली हमले कम होने लगे।