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कैप्टन मनोज पांडेय: आज जन्मदिन पर पढ़ें इस योद्धा का अपने दोस्त को लिखा आखिरी खत…

साथी सैनिकों के साथ कैप्टन मनोज पांडेय।

आज जन्मदिन है परमवीर कैप्टन मनोज पांडेय (Captain Manoj Pandey) का, जिन्होंने कारगिल युद्ध में दुश्मनों को नाकों चने चबाने पर मजबूर कर दिया था। कैप्टन पांडेय से जुड़ा एक किस्सा है- एनडीए के इंटरव्यू में जब मनोज से पूछा गया था कि सेना में क्यों जाना चाहते हैं? तो उन्होंने कहा था परमवीर चक्र जीतने के लिए। यह जांबाज सेना में परमवीर चक्र जीतने के लिए ही गया था और उसने वह कर दिखाया।

कैप्टन मनोज पांडेय का जन्म 25 जून, 1975 को उत्तर प्रदेश के सीतापुर में हुआ था। वे 11 गोरखा राइफल की पहली बटालियन (1/11 जीआर) में तैनात थे। कारगिल युद्ध के दौरान 11 जून को कैप्टन मनोज पांडेय (Captain Manoj Pandey) ने बटालिक सेक्टर से दुश्मन सैनिकों को खदेड़ दिया था। उनके नेतृत्व में सैनिकों ने जुबार टॉप पर कब्जा किया। वहां दुश्मन की गोलीबारी के बीच भी वे आगे बढ़ते रहे। कंधे और पैर में गोली लगने के बावजूद दुश्मन के पहले बंकर में घुसे। इस जांबाज ने हैंड-टू-हैंड कॉम्बैट में दो दुश्मनों को मार गिराया और पहला बंकर नष्ट कर दिया।

माता-पिता के साथ कैप्टन मनोज पांडेय।

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उनके इस साहस के देखकर साथी सैनिक भी जोश से भर गए और उन्होंने दुश्मनों पर धावा बोल दिया। अपने जख्मों की परवाह किए बिना कैप्टन मनोज पांडेय (Captain Manoj Pandey) एक बंकर से दूसरे बंकर पर हमला करते रहे। आखिरी बंकर पर कब्जा करने तक वे बुरी तरह जख्मी हो चुके थे। 24 साल की उम्र में 2/3 जुलाई, 1999 की रात मनोज पांडेय दुश्मनों का सामना करते हुए शहीद हो गए। उनके आखिरी शब्द थे- ‘ना छोड़नूं’। ये नेपाली भाषा में कैप्टन पांडेय ने कहा था, जिसका मतलब था- ‘उन्हें छोड़ना नहीं’।

कैप्टन पांडेय की इस दिलेरी ने अन्य प्लाटून और बटालियन के लिए मजबूत आधार तैयार किया और जवानों को हिम्मत दी। जिसके बाद हमारे जांबाजों ने खालूबार पर कब्जा कर लिया। इस अदम्य साहस और पराक्रम के लिए कैप्टन मनोज पांडेय (Captain Manoj Pandey) को मरणोपरांत सेना का सर्वोच्च मेडल ‘परमवीर चक्र’ प्रदान किया गया। उन्हें ‘हीरो ऑफ बटालिक’ भी कहा जाता है।

तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. केआर नारायणन से ‘परमवीर चक्र’ ग्रहण करते कैप्टन पांडेय के पिता।

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कैप्टन मनोज पांडेय अपने परिवार और दोस्तों को चिट्ठी लिखा करते थे। अपने एक मित्र पवन कुमार मिश्रा को भी वे अक्सर चिट्ठी लिखा करते थे। कारगिल युद्ध के दौरान कैप्टन पांडेय ने पवन कुमार मिश्रा को एक खत लिखा था। अपने दोस्त को लिखा वह उनका आखिरी खत था। पवन कुमार मिश्रा ने बाद में उनके जीवन पर एक किताब लिखी, जिसका नाम है– ‘हीरो ऑफ बटालिक’, कारगिल युद्ध 1999

यहां पढ़ें कैप्टन पांडेय का अपने दोस्त पवन को लिखा वह आखिरी खत-