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मेजर सोमनाथ शर्मा जयंती: अकेले सैकड़ों पाक सैनिकों को किया नेस्तनाबूद, टूटे हाथ के बावजूद दुश्मनों का मिटाया वजूद

Major Somnath Sharma

India Pakistan War 1947: मेजर सोमनाथ शर्मा (Major Somnath Sharma) टूटे हाथ के दर्द को नजरअंदाज कर अपने साथी जवानों को मैग्जीन में गोलियां भरकर देते जा रहे थे। उनकी बहादुरी की मिसाल आज भी पेश की जाती है।

भारत और पाकिस्तान के बीच 1947 में लड़े गए युद्ध में मेजर सोमनाथ शर्मा ने अहम भूमिका निभाई थी। उन्होंने बायें हाथ में चोट लगने और उस पर लगे प्लास्टर को नजरअंदाज कर दुश्मनों को नेस्तानाबूद किया था। पाकिस्तान (Pakistan) को कारगिल में हराने की पटकथा में मेजर सोमनाथ शर्मा (Major Somnath Sharma) का अहम योगदान हमेशा याद रखा जाता रहेगा।

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देश का पहले पमरवीर चक्र मेजर सोमनाथ शर्मा का जन्म 31 जनवरी 1923 में हिमाचल प्रदेश के छोटे से गांव डाढ़ के एक सैन्य परिवार में हुआ था। उनकी स्कूली शिक्षा उत्तराखंड के नैनीताल और देहरादून के प्रिंस ऑफ वेल्स रॉयल मिलिट्री कॉलेज से हुई थी। कॉलेज पास करने के बाद शर्मा की नियुक्ति ब्रिटिश भारतीय सेना की 19वीं हैदराबाद रेजिमेन्ट की आठवीं बटालियन में हुई थी।

दरअसल, 3 नवंबर, 1947 को कश्मीर के बडगाम में उन्हें मोर्चा संभालने की जिम्मेदारी दी गई थी। उस समय शर्मा (Major Somnath Sharma) सेना की कुमाऊं रेजिमेंट की चौथी बटालियन की डेल्टा कंपनी के कंपनी कमांडर थे। इस दौरान उनकी टीम में अन्य जवान तैनात कर दिए गए थे। तभी दुश्मनों ने 500 सैनिकों की क्षमता के साथ उनकी टीम पर हमला बोल दिया था।

इस दौरान दोनों तरफ से भारी गोलीबारी होने लगी थी। हमारे कई जवान हताहत हुए थे। बावजूद इसके सोमनाथ (Major Somnath Sharma) ने अपनी बहादुरी का परचिय देते हुए दुश्मनों को आगे बढ़ने से रोके रखा। खास बात यह है कि वह अपने टूटे हाथ के दर्द को नजरअंदाज कर अपने साथी जवानों को मैग्जीन में गोलियां भरकर देते जा रहे थे। इस बीच वह बहादुरी की मिसाल पेश करते हुए पाक‍िस्‍तानी सेना में घुस गए थे और उनके कई सैन‍िकों को ढेर कर द‍िया था।

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जंग के मैदान में दुश्मनों का एक मोर्टार ठीक उसी जगह पर आ कर गिरा, जहां पर मेजर सोमनाथ शर्मा (Major Somnath Sharma) तैनात थे। इस विस्फोट में वह मौके पर ही शहीद हो गए। लेकिन शहादत से पहले उन्होंने अपनी शौर्य गाथा लिख दी थी। इसके बाद उनकी बहादुरी के लिए भारत सरकार ने उन्हें मरणोपरान्त ‘परमवीर चक्र’ से सम्मानित किया।