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1962 के युद्ध में चीनियों की लाशें बिछाने वाले मेजर शैतान सिंह के बारे में जानें ये खास बातें

1962 की जंग में 13वीं कुमाऊंनी बटालियन की ‘सी’ कंपनी ने रेजांग ला दर्रे में चीनी सैनिकों का सामना किया था, जिसका नेतृत्व मेजर शैतान सिंह कर रहे थे।

Indo-China War 1962: कुमायूं रेजीमेंट के शैतान सिंह (Major Shaitan Singh) शौर्य इतना जबरदस्त था कि इन्हें इसके लिए सेना के सर्वोच्च सम्मान ‘परमवीर चक्र’ से सम्मानित किया गया।

भारत और चीन के बीच 1962 में युद्ध हुआ था। इस युद्ध में भारतीय सेना (Indian Army) को हार का सामना करना पड़ा था। चीनी सेना ने हर मोर्चे पर भारतीय जवानों को चुनौती दी थी। चीनी सेना के पराक्रम के आगे हमारे जवान ज्यादा दिनों तक टिक नहीं सके थे।

इस युद्ध एक जवान ऐसे भी थे जिन्होंने अपने पराक्रम के जरिए दुश्मनों को बुरी तरह से पटखनी दी थी। इन्होंने चीनी सैनिकों की लाशों पर तांडव किया था। इस जवान का नाम था मेजर शैतान सिंह (Major Shaitan Singh)। कुमायूं रेजीमेंट के शैतान सिंह का शौर्य इतना जबरदस्त था कि इन्हें इसके लिए सेना के सर्वोच्च सम्मान ‘परमवीर चक्र’ से सम्मानित किया गया।

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ऐसा रहा बचपन: मेजर शैतान सिंह (Major Shaitan Singh) पढ़ाई में शुरू से ही आगे रहे। देश प्रेम का जज्बा उनमें शुरू से था। शैतान सिंह ने जोधपुर के राजपूत हाई स्कूल में अपनी मैट्रिक तक की पढ़ाई की थी। उन्हें फुटबॉल खेलना बेहद पसंद था।

स्कूल में पढ़ाई के दौरान वह खेलकूद में भी आगे रहे थे। 1943 में 12वीं तक की पढ़ाई करने के बाद जसवंत कॉलेज से ग्रेजुएशन की थी। इसके बाद 1 अगस्त, 1949 को वह एक अधिकारी के रूप में जोधपुर राज्य बलों में शामिल हुए थे। इसके बाद साल 1962 में चीनी सेना के विरुद्ध लड़े।

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18 नवंबर, 1962 का दिन था, जब सुबह होने को थी। 13 कुमायूं बटालियन की ‘सी’ कम्पनी चुशूल सेक्टर में दुश्मनों पर गोलियां दाग रही थी। मेजर भी उन सैनिकों में थे। वह जहां से गोलियां दाग रहे थे, वहीं पर उनका शव भी करीब तीन महीने बाद बरामद किया गया था।