पाकिस्तान भारत के साथ हमेशा से छल करता आया है। एक बार नहीं, कई बार ऐसा देखा गया है। भारत ने हमेशा से पाकिस्तान के साथ मधुर संबंध बनाने की कोशिश की है। 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में ये संबंध कई हद तक मधुर हुए थे। इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 19 फरवरी, 1999 को तत्कालीन पीएम अटल बिहारी वाजपेयी अपने मंत्रिमंडल के सहयोगियों, सांसदों, लेखकों और कलाकारों को लेकर बस से लाहौर पहुंचे थे।
पाकिस्तान में सरकार के अंदर सेना का दखल रहता है। सेना सरकार पर हावी रहती है। 1999 में भी कुछ ऐसा हुआ था। एक तरफ दिवंगत पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी तत्कालीन पाकिस्तानी पीएम नवाज शरीफ के साथ बातचीत कर दोनों देशों के बीच संबंध सुधार रहे थे तो दूसरी तरफ सेना भारत के खिलाफ साजिश रच रही थी। ऐसी साजिश जिसका नुकसान उसे खुद उठाना पड़ा। ये साजिश बाद में कारगिल युद्ध के रूप में सामने आई।
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दरअसल बात फरवरी की है जब एलओसी पर मौजूद कारगिल की ऊंची पहाड़ियों पर कड़ाके की ठंड पड़ती है। दोनों देशों की सेनाएं इस दौरान पीछे हट जाती हैं। लेकिन सेना के जनरल परवेज मुशर्रफ ने पाकिस्तानी सेना को पीछे हटने की बजाय कारगिल में आगे बढ़ने के लिए कह दिया। नतीजन पाकिस्तानी सेना ने रणनीतिक तौर पर बेहद महत्वपूर्ण कारगिल के क्षेत्रों पर कब्जा जमा लिया।
इसके बाद मई में करगिल युद्ध के पहले हीरो सौरभ कालिया और उनके 6 साथियों को पकड़कर पाकिस्तानी सेना ने उन्हें मौत के घाट उतार दिया। इसके बाद भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ जंग छेड़ दी। पाकिस्तान सेना कारगिल के ऊंचाई वाले इलाकों में थी जबकि भारतीय सेना को चढ़ाई कर दुश्मन का खात्मा करना था। पाकिस्तान के पास अनुकूल परिस्थिति थी। इसके बावजदू भारतीय सैनिकों ने एक-एक कर अलग-अलग ऑपरेशन को अंजाम दिया और 26 जुलाई आते-आते पाकिस्तान को बुरी तरह हरा दिया।