यह युद्ध बांग्लादेश की आजादी के लिए लड़ा गया था। इस युद्ध में भारतीय सेना (Indian Army) ने बांग्लादेश की मुक्तिवाहिनी के साथ मिलकर पाकिस्तानी सेना को हराया था।
भारत और पाकिस्तान के बीच 1971 में लड़े गए युद्ध में सेना के जवानों ने ऐसा कहर बरपाया था, जिसे याद कर दुश्मन आज भी कांप उठते होंगे। इस युद्ध में शरीर में गोली लगने और बुरी तरह से घायल होने के बाद भी कई जवानों ने अपनी आखिरी सांस और दर्द के साथ दुश्मनों को छलनी किया था।
यह युद्ध बांग्लादेश की आजादी के लिए लड़ा गया था। इस युद्ध में भारतीय सेना (Indian Army) ने बांग्लादेश की मुक्तिवाहिनी के साथ मिलकर पाकिस्तानी सेना को हराया था।
War of 1971: पाकिस्तान में जहां भारतीय सेना ने खून बहाया, उस जगह की मिट्टी बोतल में भर लाए थे जवान
इस युद्ध में भारतीय सेना (Indian Army) के महार रेजिमेंट के मेजर जनरल सुशील कुमार शारदा ने कूल्हे पर गोली खाने के बावजूद बहादुरी की मिसाल पेश की थी। शारदा के कूल्हे के पास लटकती पानी की बोतल को चीरती हुई गोली उनके कूल्हे पर लगी थी। वह युद्ध में पर्वत अली फतह के दौरान अपनी कंपनी को कमांड कर रहे थे।
12-13 दिसंबर के दिन उन्हें दुश्मनों की चौकियों को धवस्त करने का ऑर्डर मिला था। फिर क्या था, ऑर्डर मिलते ही वह अपने साथी जवानों के साथ दुश्मनों पर टूट पड़े थे। वह टीम को लीड कर रहे थे, लिहाजा वह साथी जवानों का हौसला बढ़ाने के लिए एक जगह से दूसरी जगह जा रहे थे। इसी दौरान दुश्मन की एक गोली उनके कूल्हे पर जा लगी थी।
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गोली लगने के बावजूद उनका जोश कम नहीं हुआ था और वह साथी जवानों का हौसला लगातार बढ़ाए जा रहे थे। दुश्मनों पर वे और उनके जवान कहर बनकर टूट पड़े थे। नतीजन, हमारे जवानों ने चौकी को अपने कब्जे में ले लिया था। इस बहादुरी के लिए उन्हें साल 1971 में ‘वीर चक्र’ से सम्मानित किया गया।