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पल भर में दुश्मन को कर देते हैं चित, जानिए NSG कमांडो से जुड़ी हर अहम बातें

दुश्मन ने पलक झपकाई और उसका काम तमाम। जी हां, चुस्ती, फुर्ती, दिलेरी और अदम्य साहस ने ही एनएसजी (NSG) यानी नेशनल सिक्यूरिटी गार्ड को दुनिया की सबसे बेहतरीन कमांडो की श्रेणी में ला खड़ा करती है। इन कमांडो को ‘ब्लैक कैट’ भी कहा जाता है। हर कोई ‘ब्लैक कैट’ नहीं बन सकता। इसके लिए आर्मी, पैरा मिलिट्री या पुलिस में होना बेहद ही जरुरी है।

NSG कमांडो

आर्मी से 3 और पैरा मिलिट्री से 5 साल के लिए जवान NSG कमांडो ट्रेनिंग के लिए आते हैं। NSG बनने के लिए इन जवानों को देश की सबसे कड़ी ट्रेनिंग से गुजरना होता है। एनएसजी बनने से पहले जवानों का सबसे पहले फिजिकल और मेंटल टेस्ट होता है। इसके बाद 12 सप्ताह यानी लगभग तीन महीने तक यह जवान ऐसी कड़ी ट्रेनिंग से होकर गुजरते हैं कि ट्रेनिंग पूरी होने के बाद यह किसी फौलाद की तरह बन जाते हैं। इन्हें जिग जैग रन की ट्रेनिंग के अलावा जिस्म के ऊपरी हिस्से को मजबूत करने की विशेष ट्रेनिंग भी दी जाती है। मंक्री क्रॉल, 100 मीटर की स्प्रिंग दौड़, इनक्लाइंड पुश अप्स, लॉन्ग एक्सरसाइज इत्यादि इनकी ट्रेनिंग के अहम हिस्से हैं।

परिस्थितियां चाहे जैसी भी हो एनएसजी कमांडो को ऐसी ट्रेनिंग दी जाती है कि वो किसी भी मुश्किल से भी मुश्किल हालात का सामना कर सकते हैं। भले ही इनके हाथों में हथियार न हो, लेकिन एक कमांडो दुश्मन को मार गिराने की ताकत रखते हैं। इसमें कई तरह की मार्शल आर्ट की कलाएं भी सिखाई जाती हैं। दुश्मन के हाथों से चाकू छीनकर कैसे उससे उसी का गला काटना है, ये खतरनाक तरीका भी इन कमांडोज को सिखाया जाता है। विमान के हाईजैक हो जाने की स्थिति में यह कमांडो हाईजैकर्स को भी धूल चटा सकते हैं। NSG का मुख्य कार्य आतंकी गतिविधियों से देश की आंतरिक सुरक्षा को चाक-चौबंद रखना होता है।

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यह गृह मंत्रालय के अधीन काम करता है। आज से ठीक 35 साल पहले 15 अक्टूबर के दिन ही इस देश की सर्वोच्च सुरक्षा के लिए एनएसजी की स्थापना की गई थी। पूर्व पीएम इंदिरा गांधी की हत्या के बाद केंद्र सरकार ने देश और खासतौर पर कश्मीर से आतंकियों का सफाया करने के लिए इसका गठन किया गया था। मुश्किल वक्त कमांडो सख्त, यह नारा है राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (NSG) का, जिन्हें ब्लैक कैट कमांडो भी कहा जाता है। क्योंकि ये हमेशा ब्लैक यूनीफॉर्म के साथ नजर आते हैं। देश के ये जांबाज कमांडो हमेशा अपनी जान हथेली पर रखकर चलते हैं। चाहे हाड़ कपाती ठंड हो या चिलचिलाती धूप, आतंकियों की गोलियां बरसें या बम धमाके, इनके कदम न कभी रुकते और न कभी थकते।

ये वो जांबाज जवान हैं जिन्होंने मुंबई अटैक 26/11 हो, अहमदाबाद के अक्षरधाम अटैक, जम्मू कश्मीर के रघुनाथ मंदिर पर अटैक के दौरान अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। NSG का ध्येय वाक्य है ‘सर्वत्र सर्वोत्तम सुरक्षा’। एनएसजी की 51 स्पेशल एक्शन ग्रुप की स्पेशल यूनिट ने तमाम दफा मुश्किल हालातों में अपना योगदान दिया है। देश में 26/11 मुंबई आतंकी हमले, पठानकोट एयर बेस पर हमले और अक्षरधाम आतंकी हमले के वक्त इन्हीं कमांडोज को तैनात किया जाता है। मुंबई के आतंकी हमले में मेजर संदीप उन्नीकृष्णन के साथ चार कमांडो ने मोर्चा संभाला था।

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2002 में गुजरात के गांधी नगर में स्थित अक्षरधाम आतंकी हमले के दौरान एनएसजी के कमांडोज ने 2 आतंकियों को मौत के घाट उतारा था। NSG कमांडोज की सबसे खास बात है त्वरित गति से इनकी कार्रवाई और हर हाल में टारगेट को फिनिश करना। अपने गठन के बाद से आज तक एनएसजी कमांडो दो दर्जन से ज्यादा खतरनाक ऑपरेशनों को अंजाम दे चुके हैं। किसी भी ऑपरेशन में वे आज तक असफल नहीं हुए। कमांडोज की मानसिक टेनिंग भी बेहद सख्त होती है। उनमें कूट-कूट कर देशभक्ति का जज्बा भरा जाता है।

अपने कर्तव्य के प्रति ऊंचे मानदंड रखने की लगन भरी जाती है। दुश्मन पर हर स्थिति में विजय प्राप्त करने की महत्वाकांक्षा भरी जाती है और अंत में अपने कर्तव्य के प्रति हर हाल में ईमानदार बने रहने की मानसिक टेनिंग दी जाती है। इस दौरान इन कमांडोज को बाहरी दुनिया से आमतौर पर बिल्कुल काट कर रखा जाता है। न उन्हें अपने घर से संपर्क रखने की इजाजत होती है और न ही उन सैन्य संगठनों से, जहां से वे आये होते हैं।

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