Arun Khetarpal: खेत्रपाल (Arun Khetarpal) की जंग के मैदान में सबसे बड़ी उपलब्धि पाकिस्तान के आठ टैंकों के चिथड़े उड़ाना थी। वह आखिरी सांस तक पाकिस्तान को भारी नुकसान पहुंचा रहे थे।
भारत और पाकिस्तान के बीच 1971 में भीषण युद्ध लड़ा गया था। युद्ध में पाकिस्तान को बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा था। भारतीय वीर सपूतों ने जान की बाजी लगाकर भारत मां की रक्षा की थी। ऐसे ही एक जवान पुणा हॉर्स रेजिमेंट के सबसे युवा शहीद सेकेंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल (Arun Khetarpal) भी थे। शहीद होने से पहले इन्होंने पाकिस्तान को भारी नुकसान पहुंचाया था। आखिरी सांस तक जंग के मैदान में डटे रहे थे।
खेत्रपाल 14 अक्टूबर, 1950 को जन्में थे। वे 13 जून, 1971 को पूना हॉर्स में भर्ती हुए इसके बाद तीन दिसंबर को युद्ध में शामिल हो गए थे। यानी सेना में शामिल होने के 6 महीने बाद ही देश के लिए जंग लड़ी। वह बटालियन शकरगढ़ सेक्टर में बसंतर की लड़ाई में शामिल हुए थे। भारतीय सेना इस सेक्टर में 10 मील भीतर घुस गई थी।
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खेत्रपाल की जंग के मैदान में सबसे बड़ी उपलब्धि पाकिस्तान के आठ टैंकों के चिथड़े उड़ाना थी। वह आखिरी सांस तक पाकिस्तान को भारी नुकसान पहुंचा रहे थे। इन्हें 1971 के युद्ध में बसंतर की लड़ाई के हीरो के तौर पर भी जाना जाता है।
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इस लड़ाई में दुश्मन से घिर जाने के बावजूद अपने हर जूनियर ऑफिसर को एक इंच भी पीछे हटने के लिए मना कर दिया था। उनकी इसी रणनीति के दम पर सेना बसंतर की लड़ाई में जीत हासिल करने में कामयाब हुई और पाकिस्तान को हार के अलावा और कुछ नसीब नहीं हुआ। शहीद अरुण खेत्रपाल (Arun Khetarpal) को मरणोपरांत ‘परमवीर चक्र’ से नवाजा गया था।