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World View with Shivkant: इन फैसलों से तालाबंदी का सारा फायदा नुकसान में बदल जाएगा

सार्स कोवी-2 वायरस और उससे फैलने वाली बीमारी कोविड-19 की रोकथाम करना एक बहुत बड़ी चुनौती थी। क्योंकि यह वायरस एकदम नया था और किसी को इसके स्वभाव और रोकथाम के सही उपायों की जानकारी नहीं थी। इसलिए स्वीडन को छोड़ कर दुनिया के लगभग सभी देशों ने लॉकडाउन या तालाबंदी का सहारा लिया जो सात सौ साल पहले प्लेग की रोकथाम के लिए अपनाई गई थी। लेकिन लोगों और उनके कारोबारों को अनिश्चित काल तक तालेबंदी में नहीं रखा जा सकता। इसलिए आज से अमेरिका के 50 में से 32 राज्य तालाबंदी के नियमों में आंशिक ढील दे रहे हैं। इटली, स्पेन और स्विट्ज़रलैंड में पिछले ही सप्ताह से चीज़ें खोली जाने लगी हैं। ब्रिटेन में भी अगले कुछ दिनों के भीतर ढील दिए जाने की उम्मीद है।

लेकिन वायरस की रोकथाम के लिए लगाई गई तालाबंदी को खोलना सरकारों के लिए उसे लागू करने से भी बड़ी चुनौती साबित होने वाला है। क्योंकि सबसे बुरी तरह प्रभावित हुए देशों में वायरस के फैलने की रफ़्तार भले ही धीमी पड़ गई हो, लेकिन वायरस का ख़ात्मा नहीं हुआ है। वैज्ञानिक बार-बार चेतावनी दे रहे हैं कि नए रोगियों का पता लगाने वाले टेस्ट, रोगी पाए जाने वाले लोगों का जितने भी लोगों से संपर्क हुआ उनकी टोह और फिर रोगियों और उनके संपर्क में आए लोगों के इलाज और एकांतवास की व्यवस्था किए बिना पाबंदियों को खोलना वायरस की नई और पहले से भी प्रबल लहर को न्योता देना है। पिछले हफ़्ते तक अमेरिका में महामारी से हर रोज़ पर्ल हार्बर के हमले जितने लोग मर रहे थे। डर इस बात का है कि सोची समझी रणनीति के बिना तालाबंदी खोल देने से रोज़ का पर्ल हार्बर रोज़ के ग्यारह सितंबर में भी बदल सकता है। इसलिए अमेरिका ही नहीं भारत को भी इस ख़तरे को नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए वरना तालाबंदी के ज़रिए हासिल हुए सारे फ़ायदे हवा हो सकते हैं।