किसी भी समाज की बेहतरी के लिए जरूरी शर्त है शिक्षा।अंधियारे से रोशनी की तरफ ले जाने का जरिया है शिक्षा और दशकों से अंधियारे में जीते रहे नक्सली भी अब इस बात को समझने लगी हैं। तभी तो, बरसों तक जंगल में हथियार लेकर नक्सलवाद का राग अलापने वाले लोग अब शिक्षा की रट लगा रहे हैं। ये लोग चंद रोज पहले तक नक्सली थे। कुछ हार्डकोर तो कुछ लुके-छिपे नक्सलियों की मदद करने वाले। लेकिन सुरक्षाबलों की मुस्तैदी के चलते नक्सलियों के घटते प्रभाव और सरकार की विकास योजनाओं की दस्तक ने इन्हें मुख्यधारा का रास्ता दिखा दिया। और फिर, बिना देरी किए इन्होंने हथियार डाल दिए। हथियार डालते वक्त जब दंतेवाड़ा के डीएम ने पूछा कि क्या करना चाहते हो। तो दिल में बरसों से छिपी टीस उभर आई। बोले, नक्सल संगठन में रहते हुए हमने जिन स्कूलों को ब्लास्ट कर उड़ा दिया। उस अपराध का प्रायश्चित करना चाहते हैं। उसी जगह नए स्कूल बनाना चाहते हैं ताकि आने वाली पीढ़ियां उनकी तरह रास्ता ना भटक जाएं। ताकि बस्तर की इस खूबसूरत फिजा से अंधियारे का राज हमेशा के लिए खत्म हो सके। मांग ऐसी थी, जिसको मानने में एक पल की भी देरी नहीं की जा सकती थी। लिहाजा, दंतेवाड़ा के डीएम दीपक सोनी ने फौरन हामी भर दी। मांग मान ली गई। स्कूल बनाने के लिए फंड आवंटन का आदेश जारी हो गया। जिन हाथों ने कभी स्कूल को जमींदोज़ किया था। अब वही हाथ, नए सिरे से स्कूलों की नींव तैयार कर रहे हैं। और ये सब हफ्तेभर के भीतर। बस्तर के आईजी पी सुंदरराज इस बात को लेकर आशावान हैं कि पिछले 4 दशकों में बस्तर इलाके का जो नुकसान नक्सलियों ने किया है उसकी भरपाई इन्हीं लोगों के मदद से हो सकती है।
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