लद्दाख में चीनी और हिन्दुस्तानी जवानों के बीच हुए हिंसक संघर्ष में शहीद हुए सुनील कुमार का 18 जून की सुबह सैन्य सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया। बिहार के बिहटा के रहने वाले सुनिल कुमार को उनके 10 साल के बेटे आयुष ने मुखाग्नि दी। इससे पहले उनके पैतृक गांव बिहटा के तारानगर से मनेर स्थित गंगा घाट तक अंतिम यात्रा निकली। इसमें हजारों लोग शामिल हुए। इस दौरान लोगों ने भारत माता की जय और वीर सुनील अमर रहे के नारे लगाए। सुनील की पार्थिव देह को सुबह उनके पैतृक गांव लाया गया था। 15 जून की रात को गलवान घाटी में भारत और चीन के सैनिकों के बीच हिंसक झड़प हुई थी। इसमें भारत के 20 जवान शहीद हो गए थे।
17 जून की सुबह जब सुनील कुमार (Martyr Sunil Kumar) के बड़े भाई अनिल कुमार मैनपुरा स्थित घर पहुंचे तो उनके बच्चे बड़े पापा को देख खुश हुए। विराट उनसे लिपट गया लेकिन अनिल ऐसे खड़े रहे जैसे उन्हें काठ मार गया हो। अनिल की चुप्पी को देख तीनों मासूम बच्चे चुप्पी को तोड़ने का प्रयास कर रहे थे।
अनिल कुमार ने सुनील की पत्नी रीति को जब सुनील के शहादत की खबर दी तो उनके पैरों तले जमीन खिसक गई। उन्हें अपने कानों पर यकीन नहीं हो रहा था। सीमा पर संघर्ष ने उनके सुहाग को छीन लिया था। रीति को देखकर अनिल से रहा न गया। उनकी डबडबायी आंखों से आंसू की बूंदें टपकने लगी।